भारत सरकार दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) में शामिल 10 देशों में से प्रत्येक को द्विपक्षीय रियायतें देना चाहती है। इसके लिए वह नरमी की संभावना तलाश रही है, जिस पर आसियान देशों के साथ व्यापार समझौते की समीक्षा बैठक में विचार किया जाएगा। इस व्यापारिक करार पर भारत ने 13 साल पहले हस्ताक्षर किए थे।
आसियान देशों के साथ व्यापार करार की समीक्षा बैठक का तीसरा दौर 29 से 31 जुलाई को इंडोनेशिया के जकार्ता में होगा। दोनों पक्ष 2025 तक समीक्षा पूरी करने के पक्ष में हैं। अगर इस पर सहमति बनती है तो आसियान के दसों देशों को एकसमान शुल्क ढांचे के बजाय अलग-अलग रियायतें मिल सकती हैं। इससे भारत को बेहतर सौदे हासिल करने में मदद मिलेगी और उन क्षेत्रों में देसी हितों की रक्षा भी होगी, जहां आसियान देशों की बाजार पैठ बढ़ने से नुकसान हो सकता है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अगर भारत एक शुल्क ढांचा रखता है तो दिक्कत रहेगी क्योंकि हो सकता है कि 8 देशों को किसी क्षेत्र में प्रवेश देना फायदेमंद हो मगर बाकी दो देशों के लिए ऐसा करना सही नहीं हो।’ आसियान मुक्त व्यापार समझौते पर चलता है, जिसमें हरेक सदस्य देश के लिए अलग-अलग शुल्क रखा जा सकता है।
इसका मतलब यह है कि दसों देशों के लिए एक जैसा शुल्क होना जरूरी नहीं है। भारत ने मुक्त व्यापार समझौते में एक ही शुल्क ढांचा रखा था, जिससे उसे नुकसान हुआ है।
अधिकारी ने कहा, ‘अगर शुल्क में मामूली बदलाव होता है तो समीक्षा से अच्छे नतीजे मिलना मुश्किल है। अलग-अलग देश के लिए अलग-अलग रियायत हो सकती हैं।
भारत इसमें लचीला रुख अपनाने की गुंजाइश तलाश रहा है ताकि भागीदार देशों के हितों के साथ वह अपने आर्थिक हितों भी संतुलन साध सके। इस बारे में जानकारी के लिए वाणिज्य विभाग को ईमेल भेजा गया लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
आसियान देशों में ब्रूनेई दरुस्लाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। दिल्ली की संस्था जीटीआरआई द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार आसियान यूरोपीय संघ जैसा नहीं है। आसियान किसी संगठन की तरह नहीं बल्कि देशों के समूह के तौर पर मुक्त व्यापार समझौता करता है, जिसमें हर देश के लिए शुल्क अलग-अलग हो सकता है।
जीटीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को प्रत्येक देश के साथ व्यापार का नफा-नुकसान देखते हुए आसियान देशों के लिए अलग-अलग शुल्क ढांचा रखना चाहिए था।