दिल्ली सरकार ने एयरलाइनों से विस्तार में जानना चाहा है कि विमानों के ईंधन (एटीएफ) पर बिक्री कर घटाने से दिल्ली एयरपोर्ट से कितना ज्यादा ईंधन भरा जा सकता है।
उद्योग के एक सूत्र ने बताया कि एयरलाइनों के प्रतिनिधि पिछले कई दिनों से एटीएफ पर बिक्री कर को 20 प्रतिशत से 4 प्रतिशत करने के आग्रह के साथ सरकार से मिल चुके हैं। अब सरकार उन्हीं से यह पूछ रही है कि दिल्ली एयरपोर्ट पर कितने ईंधन का संग्रह किया जाए ताकि बिक्री कर में कमी करने के बाद भी राजस्व पर कोई प्रभाव न पडे।
देश के कुल घरेलू एयर ट्रैफिक का 25 प्रतिशत दिल्ली से ही संचालित होता है। विमान कंपनियां दिल्ली एयरपोर्ट से करीब 20 प्रतिशत ईंधन भरती हैं। दिल्ली की एक बजट एयरलाइन कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि अगर कर में छूट दी जाती है तो एयरपोर्ट पर ईंधन की खपत में 25 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी।
घरेलू उड़ानों के लिए ईंधन और एटीएफ की खपत में वृद्धि होने से एक एयरलाइन के राजस्व में भी बढाेतरी होगी। मिसाल के तौर पर स्पाइस जेट जैसी कंपनियां 2008-09 में ईंधन के मद में 1000 करोड रुपये खर्च करने की योजना बना रही हैं। इनमें से 200 करोड रुपये का ईंधन तो अकेले दिल्ली एयरपोर्ट पर भरा जाएगा।
अगर एटीएफ पर बिक्री कर 20 प्रतिशत से घटा कर इसे 4 प्रतिशत कर दिया जाता है तो इस एयरलाइन को साल में बतौर बिक्री कर मात्र 8 करोड़ रुपये चुकाने होंगे जबकि पुरानी कर व्यवस्था में 40 करोड़ रुपये चुकाने होते हैं।
वर्तमान में एटीएफ के जरिये विमान कंपनियां अपने कुल खर्च का 45 प्रतिशत खर्च करती है। आंध्रप्रदेश और केरल सरकार ने एटीएफ को 4 प्रतिशत कर दिया है। वैसे देशभर में औसतन एटीएफ की दर 30 प्रतिशत है और अगर इसे 4 प्रतिशत कर दिया जाता है तो विमान किराये में भी 10 प्रतिशत की कमी हो सकती है।
एयर इंडिया, स्पाइस जेट, गो एयर और इंडिगो जैसी विमान कंपनियां तो एटीएफ मूल्यों में हुई कमी से फायदा उठाने के लिए हैदराबाद और कोच्चि एयरपोर्ट से इसे खरीदने की सोच रही है।