प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की निगरानी बढ़ने के साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने तेल रिफाइनरी के विस्तार और नई परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए हिस्सेदारों से बातचीत तेज कर दी है। इस समय जमीन संबंधी कठिनाई, पर्यावरण की मंजूरी न मिलने, धन की कमी आदि वजहों से कई परियोजनाएं अटकी हुई हैं, जिन पर प्रधानमंत्री कार्यालय नजर बनाए हुए है। देश में कच्चे तेल के घरेलू उत्पादन को गति देने के लिए यह कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे बढ़ती मांग पूरी की जा सके।
विचाराधीन परियोजनाओं में से एक परियोजना महाराष्ट्र के रत्नागिरि में पश्चिमी तट पर स्थित विवादों से घिरी रिफाइनरी है।
एक अधिकारी ने कहा कि सरकार जल्द ही कठिनाइयों पर विचार करने, बातचीत बहाल करने और विभिन्न हिस्सेदारों को चर्चा के लिए साथ लाने के लिए एक प्रमुख दल का गठन करेगी। इस दल में मंत्रालय, तेल विपणन कंपनियों (OMC) के अधिकारी व अन्य शामिल होंगे।
एक अधिकारी ने कहा, ‘सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजाओं को लागू करे वाली एजेंसी या तो OMC, राज्य सरकारें और निजी क्षेत्र के साझेदार होते हैं। मंत्रालय प्रायः पुल का काम करता है और हम यही करेंगे।’
सरकार देश में कच्चे तेल की कुल उत्पादन क्षमता मौजूदा 250 MMTA से बढ़ाकर 450 MMTPA (मिलियन मीट्रिक टन प्रति साल) या करीब 50 लाख बैरल प्रति दिन करना चाहती है। बहरहाल ईंधन की मांग 2050 तक दोगुना बढ़कर 100 लाख बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है।
भारत इस समय रिफाइनिंग क्षमता के हिसाब से विश्व का चौथा बड़़ा देश है। लेकिन घरेलू मांग तेजी से बढ़ रही है, जिसे देखते हुए सरकार क्षमता विस्तार को प्राथमिकता दे रही है।
फरवरी में ईंधन की खपत बढ़कर 24 साल के उच्च स्तर 48.2 लाख बैरल प्रतिदिन पहुंच गई है। इसी के साथ सरकार के अनुमान के मुताबिक देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 2023-24 में बढ़कर 2,338.1 लाख टन की नई ऊंचाई पर पहुंच जाएगी।
रुकी हुई परियोजनाएं
जटिल और पूंजी पर केंद्रित रिफाइनरी परियोजनाओं के तैयार होने की अवधि सामान्यतया लंबी होती है। लेकिन भारत में तमाम चुनौतियों ने वृद्धि रोक रखी है।
इस तरह की परियोजनाओं में सबसे बड़ी परियोजना पश्चिमी तट की मेगा रिफाइनरी है, जो महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के नानार में स्थापित की जा रही है।
इसकी घोषणा 2015 में की गई थी। 44 अरब डॉलर की परियोजना की तेल शोधन क्षमता 60 MMTPA होगी। लेकिन पहले की शिव सेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच मसलों के कारण बड़ी परियोजना अटक गई।
सऊदी अरामको और यूएई की एडनॉक ने 2018 में रत्नागिरि रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड परियोजना को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए समझौता किया था।
परियोजना में विदेशी साझेदार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत थी, जबकि IOCL का मालिकाना 25 प्रतिशत और शेष 25 प्रतिशत बीपीसीएल और एचपीसीएल में विभाजित था।
सूत्रों ने कहा कि परियोजना के लिए 15,000 एकड़ जमीन के अधिग्रहण में देरी के कारण इसके विभिन्न पक्ष निराश होने लगे। 2022 के अंत तक जहां राज्य सरकार 2,900 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने में सफर रही, वहीं जमीन अधिग्रहण की कठिनाइयो और तेज विरोध के कारण जरूरी शेष जमीन का अधिग्रहण रुका हुआ है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘विभिन्न इलाकों की कुछ रिफाइनरी की परियोजनाएं खत्म करने पर विचार हो रहा है क्योंकि अब शुरुआती योजना पर काम जारी रखना बहुत मुश्किल लग रहा है।’
देश की सबसे बड़ी परियोजना के रूप में 2013 में राजस्थान रिफाइनरी परियोजना की घोषणा हुई थी। यह भी निर्धारित तिथि से पीछे चल रही है। HPCL और राजस्थान के बीच संयुक्त उद्यम एचपीसीएल राजस्थान रिफाइनरी (HRRL) को लागत बढ़ने के संकट से भी जूझना पड़ रहा है।
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शुरुआत में बाड़मेर के पचपादरा कस्बे में बन रही परियोजना पर 43,129 करोड़ रुपये लागत आने का अनुमान लगाया गया था, जो अब बढ़कर 72,000 करोड़ रुपये हो गया है।
इसकी सभी रिफाइनरी इकाइयों को तैयार करने की अंतिम तिथि मार्च 2024 बरकरार है, लेकिन अगले 3 महीनों में इसकी 4 यूनिट परिचालन के स्तर पर पहुंच सकती हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र की आखिरी नई रिफाइनरी BPCL की मध्य प्रदेश स्थित बीना रिफाइनरी थी, जो 2011 में चालू हुई। शुरुआत में इसकी क्षमता 6 MMTA थी, जिसे 2018 तक बढ़ाकर 7.8 MMTA कर दिया गया।
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बुंदेलखंड इलाके में 49,000 करोड़ रुपये की विस्तार योजना बनाई गई थी, जिससे क्षमता बढ़कर 11 एमएमटीपीए हो जाएगी। पिछले महीने में मध्य प्रदेश सरकार ने इसके विस्तार को मंजूरी दी थी। साथ ही विमान ईंधन, लीनियर लो डेंसिटी पॉलिथीन, बिटुमिन और बेंजीन जैसे सह उत्पादों के उत्पादन के लिए एक पेट्रोकेमिकल परियोजना स्थापित करने को भी मंजूरी दी गई है।