सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में परिवर्तन के बारे में दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। इन्हें 30 जनवरी को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दी गई थी।
इसमें रियल एस्टेट क्षेत्र में एफडीआई के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। अनुमान लगाया जा रहा था कि इसमें किए जाने वाले परिवर्तनों का असर स्टॉक एक्सचेंज में नामित रियल एस्टेट कं पनियों पर पड़ेगा।
उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले औद्योगिक नीति एवं प्रोत्साहन विभाग ने छह प्रेस नोट जारी किए हैं।
इनमें नागरिक विमानन, पेट्रोलियम और गैस के अलावा कई अन्य क्षेत्र शामिल हैं। बहरहाल इस प्रेस नोट में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के माध्यम से रियल एस्टेट के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बारे में कोई अलग स्पष्टीकरण नहीं है, जिससे क्षेत्र आधारित निवेश योजना के तहत निवेश हो सके।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि रियल एस्टेट के बारे में स्पष्टीकरण उस समय भी ध्यान में नहीं आया जब कैबिनेट ने इसे हाल ही में डीआईपीपी को भेजा।
इसी के क्रम में प्रेस नोट में भी इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया। अधिकारियों का कहना है कि, ‘यह स्पष्ट नहीं है कि कैबिनेट ने एफडीआई और एफआईआई नियमों को अलग अलग क्यों नहीं किया।’ खास बात यह है कि जिस दिन एफडीआई नियमों में परिवर्तन के लिए कैबिनेट की बैठक हुई थी, सरकार ने मीडिया के लिए एक नोट जारी किया था।
उसमें कहा गया था कि कैबिनेट ने इसे स्वीकृति दे दी है कि एफआईआई निवेश एफडीआई सें अलग होगा। इसमें 2005 के प्रेस नोट-2 से आगे बढ़कर विचार किया गया है।
एफआईआई को एफडीआई से अलग करने के लिए प्रावधान बनाने का प्रस्ताव डीआईपीपी ने कैबिनेट को दिया था।
इस कदम से उम्मीद दी जा रही थी कि शेयर बाजार में नामित कुछ कंपनियां जैसे डीएलएफ, यूनीटेक और पार्श्वनाथ जैसी कंपनियों की पूंजी बढ़ेगी, जो पहले से ही विदेशों में कारोबार कर रही हैं।
साथ ही इस सेक्टर के लिए स्पष्ट नीति भी बन जाएगी।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘नए प्रावधानों में वर्तमान नियमों को ही जारी रखा गया है।’ इसका मतलब हुआ कि एफआईआई निवेश के मामले में भी एफ डीआई के लिए बनी नियमावली का पालन होगा, जैसा कि 2005 के प्रेस नोट-2 में कहा गया था।
इसमें निवेश पर 3 साल के लाक-इन पीरियड का प्रावधान है। यह रियल एस्टेट परियोजनाओं में न्यूनतम निर्माण और एकड़ के आधार पर बने हुए विकास के विभिन्न ढांचों के आधार पर काम करेगा।
नए नियम 2008 की पहली प्रेसनोट श्रृंखला में के्रडिट इनफार्मेशन कंपनियों के मामले में 49 प्रतिशत एफडीआई होने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
इसमें क्रेडिट रेफरेंस एजेंसियों को एनबीएफसी की लिस्ट से बाहर रखा गया है।
दूसरे प्रेसनोट में कमोडिटी एक्सचेंजों में 26 प्रतिशत एफडीआई और 23 प्रतिशत एफआईआई होने के लिए जरूरी दिशानिर्देश दिए गए हैं। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई भी एक निवेशक 5 प्रतिशत से अधिक का हिस्सेदार नहीं हो सकता है।
तीसरे प्रेस नोट में औद्योगिक पार्कों के मामले में 2005 में जारी प्रेस नोट-2 में सीमा निर्धारित करने वाले प्रावधान को खत्म कर दिया गया है।
चौथा प्रेस नोट, नागरिक विमानन क्षेत्र में एफडीआई नियमों में ढील के बारे में है। अब नान-शेडयूल्ड एयरलाइंस, चार्टर्ड एयरलाइंस और कार्गो एयरलाइंस में 74 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति होगी।
मरम्मत और देखभाल से संबंधित कामों,उड्डयन प्रशिक्षण विद्यालयों, टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टीच्यूशंस और हेलीकाप्टर तथा सीप्लेन सर्विस में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गई है।
पांचवें प्रेस नोट में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्र में निवेश के मामलों में विभिन्न प्रकार की ढील के बारे में बताया गया है।
नए दिशानिर्देशों में भारतीय साझेदारों के पक्ष में 26 प्रतिशत के निवेश को 5 साल के लिए बरकरार रखने की शर्त में ढील दी गई है। साथ ही सार्वजनिक उपक्रमों में पेट्रोलियम रिफाइनिंग के क्षेत्र में
इक्विटी कैप 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दी गई है।
छठे प्रेस नोट में माइनिंग और मिनरल्स को टाइटेनियम मिश्रित खनिज और लौह अयस्कों से अलग करने के काम से संबंधित नियम हैं।
इसमें एफडीआई बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने की अनुमति दी गई है।