केंद्र रेल-सी-रेल (rail-sea-rail- RSR) पद्धति के तहत मूल्य गणना को बदलकर तटीय ढुलाई के माध्यम से भेजे जाने वाले थर्मल कोयले के लिए रेलवे की मालभाड़ा दरों को कम करने पर विचार कर रहा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी मिली है। आगामी महीनों में कोयला की मांग में काफी इजाफा होने की उम्मीद है इसलिए केंद्र का लक्ष्य रेलवे नेटवर्क पर दबाव कम करते हुए कोयला प्रेषण में वृद्धि करना है और समुद्र से उत्पन्न कोयले की लागत को नियंत्रण में रखना है।
यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने 2023-24 के केंद्रीय बजट भाषण में तटीय नौवहन को बढ़ावा देने के स्पष्ट इरादे के बाद भी आया है। इसके बाद, रेलवे और पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय जल्द ही उच्च स्तरीय हितधारकों के साथ बैठक करने वाला है ताकि कोयले की तटीय ढुलाई के लिए ‘telescopic freight’ दरों में लाने के लिए रूपरेखा तय की जा सके।
हालांकि अभी भी काम चल रहा है। सूत्रों ने कहा कि सरकार नई नीति को आने वाले मजबूत खपत सीजन से पहले लागू करने पर जोर दे रही है, क्योंकि वह पिछले साल के कोयले की मांग-आपूर्ति के संकट को दोहराने से बचना चाहती है।
Telescopic freight यानी कोयले की खान से बंदरगाह तक की यात्रा और फिर गंतव्य बंदरगाह से पावर हाउस तक की यात्रा को एक खेप के रूप में माना जाएगा, जिससे अंतिम माल ढुलाई लागत में कमी आएगी। वर्तमान में, खान से बंदरगाह तक और गंतव्य बंदरगाह से बिजली घरों तक रेल परिवहन के लिए भाड़ा अलग से लिया जाता है, जिससे यह काफी महंगा हो जाता है।
नीति को रेल मंत्रालय से कुछ प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो तटीय नौवहन में रेल परिवहन के लिए टेलीस्कोपिक दरों पर शुल्क लगाने पर राजस्व में कमी का सामना करेगा। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने खबर दी थी कि पिछले साल नीति आयोग ने रेलवे से कोयले की ढुलाई के लिए भाड़ा कम करने पर विचार करने को कहा था।
सूत्रों ने बताया कि रेलवे मूल माल ढुलाई भारा को कम करने के किसी भी प्रस्ताव के लिए उत्सुक नहीं है, क्योंकि कोयला परिवहन राजस्व के मामले में रेलवे की मुख्य आय है। रेलवे के लिए माल राजस्व के लगभग 1.65 लाख करोड़ (वित्त वर्ष 2023 का अनुमान) के आधे से अधिक के लिए कोयले का योगदान है।