देश में बायोडीजल की आपूर्ति काफी कम है, जिसकी वजह से सरकार 2030 तक डीजल में पांच प्रतिशत बायोडीजल मिलाने का अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए एथनॉल पर भरोसा कर रही है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
यूरोप में इस्तेमाल होने वाले बॉयोडीजल में बायो डिग्रेडेबल ईंधन शामिल होते हैं। परंपरागत रूप से इसे वनस्पति तेल, जानवरों की चर्बी या रिसाइकल्ड रेटोरेंट ग्रीस से तैयार किया जाता है। भारत में इन स्रोतों से उत्पादित बायोडीजल की उपलब्धता बहुत सीमित होने के कारण इसे अपनाने को लेकर प्रदर्शन खराब रहा है।
अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि कई प्रोत्साहनों के साथ राष्ट्रीय बायोडीजल नीति पेश किए जाने के बावजूद कोई व्यावहारिक समाधान नहीं निकल सका है। परिणामस्वरूप तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को शोध करने को कहा गया है कि किस तरह से डीजल में एथनॉल मिश्रण को व्यावहारिक बनाया जा सकता है।
केंद्र सरकार की पेट्रोल में एथनॉल मिलाने की योजना व्यापक रूप से सफल रही है। 20 प्रतिशत एथनॉल मिला ई-20 पेट्रोल इस समय देश भर में 1900 से ज्यादा पेट्रोल पंपों पर बिक रहा है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘यह एकमात्र तार्किक विकल्प है कि व्यावहारिक स्वच्छ ईंधन के लिए डीजल में एथनॉल मिलाने की संभावना तलाशी जाए। हम इस पर नजदीकी से नजर रख रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि इस समय बीपीसीएल और एचपीसीएल दोनों ही एथनॉल मिले डीजल से वाहन चलाने की प्रक्रिया में हैं। इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत अब एथनॉल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। जैव ईंधन 2018 में घोषित की गई राष्ट्रीय नीति में 5 प्रतिशत बायोडीजल मिलाने का लक्ष्य रखा गया है।
बायोडीजल की आपूर्ति पर जीएसटी दर घटा दी गई है और खरीद के लिए लाभकारी मूल्य की पेशकश की गई है। इन कवायदों के बावजूद लोकसभा को मंत्रालय ने सूचित किया है कि अगस्त 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक डीजल में बायोडीजल मिलाने का प्रतिशत अभी 0.1 प्रतिशत से कम है।
ओएमसी के 2 वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि उसके बाद से मिश्रण बढ़ा है, लेकिन यह अभी 0.3 से 0.5 प्रतिशत तक ही पहुंच पाया है। इनमें से एक अधिकारी ने कहा, ‘कोविड महामारी की 2 साल की सुस्ती के बाद अब ओएमसी की बायोडीजल की खरीद चालू साल में कोविड के पहले के स्तर पर पहुंच गई है। यह रिपर्पोज यूज्ड कुकिंग ऑयल (आरयूसीओ) पहल के कारण हुआ है। लेकिन इसके बावजूद हम उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि मिश्रण का कुल मिलाकर स्तर उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। भारत में बायोडीजल की उपलब्धता बहुत कम है।’
बहरहाल ओएमसी आरयूसीको पहल का लगातार प्रचार कर रही हैं, जिसमें इस्तेमाल कोकिंग ऑयल (यूसीओ) का संग्रह शामिल है, जिसे बायोडीजल में बदला जाता है। 3 प्रमुख ओएमसी ने यूसीओ से बने बायोडीजल की 200 जगहों पर आपूर्ति के लिए रुचि पत्र निकाला था।
इस पर अध्ययन चल रहा है कि डीजल में सतत बायोमास से मिलने वाले मेथनॉल सहित अन्य कौन सी चीजें मिलाई जा सकती हैं। इस मेथनॉल को बायो-मेथनॉल और डाई एथिल ईधर कहा जाता है।
आपूर्ति की कमी
भारत में 2005 से बायोडीजल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लाई जा रही हैं। बायोडीजल खरीद की नीति को मानकों में सूचीबद्ध किया गया।
जैट्रोफा करकस और पोंगामिया पिनाटा, जिसे हिंदी में करंज कहा जाता है, जैसे पौधों से मिलने वाले गैर खाद्य तेल को प्राथमिकता दी गई है। लेकिन इनमें से ज्यादातर परियोजनाएं असफल रही हैं क्योंकि बीज की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाई, जिनके पौधरोपण व रखरखाव की लागत बहुत ज्यादा है।
टीबीओ तैयार होने में ज्यादा वक्त लगने और खराब पैदावार के कारण ओएमसी द्वारा बायोडीजल की खरीद अगस्त 2015 में शुरू हो सकी। ओएमसी द्वारा अब तक खरीदा गया अधिकांश बायोडीजल पाम स्टीरियन ऑयल, यूज्ड कुकिंग ऑयल (यूसीओ) और मामूली मात्रा में टीबीओ से तैयार किया गया है।