विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) धनशोधन निषेध कानून (PMLA) में संशोधन का अनुपालन करने के लिए वित्त मंत्रालय से छह महीने की मोहलत मांग सकते हैं। सूत्रों ने कहा कि FPI अपने संरक्षकों के जरिये मंत्रालय से संपर्क कर अपनी चिंता जाहिर करना और इस बारे में स्थिति ज्यादा स्पष्ट किए जाने की मांग करना चाहते हैं।
वित्त मंत्रालय ने 7 मार्च को अधिसूचना जारी कर गैर-लाभकारी संस्थाओं और राजनीति या सत्ता से जुड़े लोगों पर सख्ती बढ़ाते हुए धन शोधन निषेध कानून के तहत ‘लाभार्थी’ की जानकारी देने के लिए तय सीमा मौजूदा 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दी थी। पहले 10 फीसदी की सीमा उच्च जोखिम वाले देशों की इकाइयों पर लागू थी।
इसके साथ ही FPO को अपने वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों के ब्योरे का खुलासा 30 दिन के अंदर करने का निर्देश दिया गया है। सरकार ने इन इकाइयों को अपने सभी भागीदारों के नाम, पंजीकृत कार्यालयों के पते तथा कारोबार के मुख्य स्थान का विवरण देने के लिए कहा है।
इस कदम से उन विदेशी फंडों को झटका लगा है जो आम तौर पर ऐसी जानकारी देने से हिचकते हैं।
प्राइस वाटरहाउस ऐंड कंपनी में पार्टनर सुरेश स्वामी ने कहा, ‘संरक्षक (कस्टोडियन) इन नियमों के अनुपालन की समयसीमा पर स्थिति साफ करने को कह सकते हैं और पूछ सकते हैं कि तब तक ऐसा करना उल्लंघन तो नहीं माना जाएगा। कानून में बदलाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है, इसलिए कस्टोडियन को काफी काम करने होंगे और हाल में जुड़े नए ग्राहकों को लेकर भी नए सिरे से काम करना होगा।’
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि आम तौर पर FPI के पास इतने लोग नहीं होते कि इस तरह की जानकारी इतने कम समय में उपलब्ध कराई जा सके। इसलिए वे कुछ मोहलत मांग सकते हैं।
डेलॉयट में पार्टनर राजेश गांधी ने कहा, ‘FPI को इतनी सारी जानकारी देने में चुनौतियों का सामना करना होगा। वे यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि कागजी कार्रवाई की जरूरतों को धनशोधन निरोधक कानून की तरह ज्यादा सख्त नहीं बनाया जाएगा।’
सूत्रों ने कहा कि FPI उद्योग का संगठन एशिया सिक्योरिटीज इंडस्ट्रीज ऐंड फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन भी सरकार तथा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के सामने यह मसला उठाएगा। इस बारे में पूछे जाने पर संगठन ने कुछ नहीं बताया।
सूत्रों के अनुसार सरकार और सेबी से पूछा जाएगा कि PMLA में बदलाव आगे की तारीख से लागू होगा या पिछली तिथि से। विधि विशेषज्ञों ने कहा कि नियमों में बदलाव से FPI को अपने ढांचे में फेरबदल करना होगा।
निशीथ देसाई एसोसिएट्स के ऋतुल श्रॉफ, प्रखर दुआ और किशोर जोशी ने एक नोट में लिखा है, ‘कंपनी या न्यास के तौर पर कारोबार करने वाले FPI आवेदक पर वास्तविक लाभार्थी की पहचान के लिए 10 फीसदी की नई सीमा लागू होगी। मगर साझेदार फर्मों, एकल इकाई के तौर पर काम करने वाले FPI पर यह बदलाव लागू नहीं होगा। इनके लिए साझेदार की संपत्ति, पूंजी या मुनाफे के 15 फीसदी का नियम पहले से लागू है।’
कुछ लोगों का मानना है कि PMLA में नए संशोधन से देश में विदेशी निवेश पर असर पड़ सकता है और ग्राहकों से अधिक जानकारी मांगने पर नए पंजीकरण में भी कमी आ सकती है।
सुपरएनएवी में मुख्य विकास अधिकारी नेहा मालवीय कुलकर्णी ने कहा, ‘इस तरह के बदलाव से देश में विदेशी निवेश धीमा हो सकता है और कारोबारी ढांचे में भी बदलाव करना होगा। वैश्विक कोषों का ढांचा जटिल होता है, जिससे उनके कारोबार का स्थान तय करना कठिन हो जाता है। इन बिंदुओं पर नियामक प्राधिकरणों को ज्यादा सफाई देनी होगी। कस्टोडियन यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि उन्हें दी गई जानकारी सही है या नहीं।’
उद्योग के भागीदारों ने कहा कि सरकार FPI को थोड़ी मोहलत दे सकती है, लेकिन बदलाव वापस लिए जाने की संभावना नहीं है।