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विदेशी मुद्रा भंडार का परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए नहीं हो इस्तेमाल: विशेषज्ञ

Last Updated- December 12, 2022 | 1:52 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास उपलब्ध विदेशी मुद्रा भंडार का ढांचागत परियोजनाओं में इस्तेमाल किए जाने संबंधी केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के बयान पर बहस तेज हो गई है। विशेषज्ञों एवं विश्लेषकों ने कहा है कि देश में आने वाला निवेश विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य स्रोत है इसलिए इसे प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए संभाल कर रखना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार विनिमय दर में आने वाले उतार-चढ़ाव से सुरक्षा देता है इसलिए इसका इस्तेमाल दूसरे उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। बकौल विशेषज्ञ, मुद्रा भंडार पूरी तर देश की संपत्ति नहीं है क्योंकि इनके साथ देनदारियां भी जुड़ी होती हैं। 
उन्होंने कहा कि ढांचागत परियोजनाओं के लिए देश और विदेश में पूंजी की कमी नहीं हैं क्योंकि भारत सहित दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने मंदी दूर करने और मांग बढ़ाने के लिए पर्याप्त उपाय किए हैं। बुधवार को गडकरी ने कहा था कि आबीआई के पास उपलब्ध विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल सड़क परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए किया जाना चाहिए। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की सालाना बैठक में गडकरी ने कहा था कि ढांचागत परियोजनाओं के लिए देश को सस्ती पूंजी की जरूरत है। 

30 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 9.42 अरब डॉलर बढ़कर 620.57 अरब डॉलर हो गया। आरबीआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार मार्च के अंत से मुद्रा भंडार में 43.6 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। 
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए साक्षात्कार में कहा था कि विदेशी मुद्रा भंडार हमारी संपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा था कि यह रकम व्यापार अधिशेष के माध्यम से जमा हुई है। दास ने कहा था, ‘अगर हमारे पास विदेशी मुद्रा है तो उनके लिए हमारी देनदारियां भी बनती हैं। हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में पूंजी प्रवाह का अहम योगदान होता है।’

केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, ‘विदेशी मुद्रा भंडार का एक दूसरा पहलू भी है। जब निवेशक अपनी रकम निकालने लगते हैं तो बाजार की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आरबीआई को उस हिसाब से कदम उठाने पड़ते हैं। लिहाजा इस रकम को हम अपनी आंतरिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।’ 
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने सामान्य दर व्यवस्था की तरफ दुनिया के विभिन्न केंद्रीय बैंकों के कदम बढ़ाने पर चिंता जताई। 

उन्होंने कहा, ‘इससे एक बार फिर 2013 जैसी हालत पैदा हो सकती है जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाने की आशंका से निवेशकों में घबराहट पैदा हो गई थी और सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल उछल गए थे। ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए हमें विदेशी मुद्रा का पर्याप्त स्तर बरकरार रखना होगा।’ आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी विदेशी मुद्रा के अन्यत्र इस्तेमाल के खिलाफ रहे हैं। 

First Published - August 14, 2021 | 12:06 AM IST

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