केंद्र सरकार ने ऐसी उर्वरक कंपनियों को अपने उत्पादों को सीधे बाजार में बेचने पर रोक लगा दी है जिसकी एकल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) निर्माण क्षमता 1 लाख मीट्रिक टन से कम है।
इस तरह छोटे उर्वरक कंपनियों को अब अपने उत्पाद को खुले बाजार में बेचने के लिए बड़ी कंपनियों से हाथ मिलाने पड़ेंगे। सरकार के इस निर्णय से उर्वरक उत्पादन क रने वाली कंपनियों पर यह दबाव बढ़ गया है कि वे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करे।
दरअसल तेल बीज और दाल के उत्पादन में उर्वरक का ज्यादा इस्तेमाल होता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कदम से छोटे उत्पादक कंपनियों को अपनी गुणवत्ता बढ़ाना होगा। नई एसएसपी नीति के तहत जो नए मानक लाए गए हैं, उससे भी यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा कंपनियां आए। उद्योग के जानकार बताते हैं कि सरकार की नीति इन छोटे उत्पादकों के अनुकूल नही रही है। इसे भी कम उत्पादन का एक कारण माना जा रहा है।
इस नई नीति से इस क्षेत्र में ताजा निवेश की संभावना है। भारतीय खाद संघ के महानिदेशक आर सी गुप्ता ने कहा कि कम लागत वाली उर्वरकों की मांग काफी ज्यादा है। कुछ साल पहले ये छोटे उत्पादक 38 लाख टन उर्वरक का उत्पादन करते थे जो घटकर अब 20 लाख टन हो गया है। नई नीति से इस प्रवृति पर अंकुश लग सकता है। इस उर्वरक के उत्पादन बढ़ने से डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के उपयोग का दबाव घटेगा।
गुप्ता के मुताबिक जब ये छोटी उत्पादक कंपनियां बड़ी कंपनियों से हाथ मिलाएगी तो उर्वरक की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि छोटे उर्वरक उत्पादक कंपनियों की गुणवत्ता को लेकर काफी शिकायतें आ रही थी।
बाजार की प्रवृत्ति अब इन कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी समझने में मदद करेगा। अब ये छोटी कंपनियां बाजार के अनुबंध से दीर्घ अवधि के लिए फायदे पा सकती है। पूरे देश में 74 ऐसी कंपनियां हैं जो एसएसपी का उत्पादन करती है। एसएसपी को डीएपी के विकल्प के तौर पर भी देखा जाता है।