अर्थव्यवस्था

भारत में FDI में 45.5% की गिरावट, पूंजी वापसी बढ़ी

FDI in India: एक साल पहले पूंजी स्वदेश वापस आने के कारण शुद्ध एफडीआई बढ़ा था।

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अभिजित लेले   
Last Updated- April 23, 2024 | 11:29 PM IST

भारत के शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वित्त वर्ष 2024 के 11 महीनों (अप्रैल 2023 से फरवरी 2024) में एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 45.5 फीसदी की तेज गिरावट आई। एक साल पहले पूंजी स्वदेश वापस आने के कारण शुद्ध एफडीआई बढ़ा था।

दरअसल, विदेश से आने वाले धन की राशि से विदेश भेजे जाने वाले धन को घटाने पर शुद्ध एफडीआई प्राप्त होता है। शुद्ध एफडीआई अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के दौरान 14.55 अरब डॉलर था जबकि यह बीते साल की इस अवधि में 26.71 अरब डॉलर था।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े (अप्रैल 2024 की बुलेटिन) के अनुसार अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के दौरान भारत में 26.69 अरब डॉलर का एफडीआई आया जबकि 12.14 अरब डॉलर विदेश भेजे गए।

हालांकि एक साल पहले की इस अवधि (अप्रैल 2022 से फरवरी 2023) के दौरान एफडीआई 39.61 अरब डॉलर रहा जबकि 12.90 अरब डॉलर रकम विदेश भेजी गई। आरबीआई के आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 24 के 11 महीनों में भारत में प्रत्यक्ष निवेश करने वाले निवेशकों की तरफ से पूंजी वापसी/ विनिवेश बढ़कर 38.30 अरब डॉलर हो गया था जबकि यह अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 के दौरान यह 27.17 अरब डॉलर था।

आरबीआई के अप्रैल 2024 के मासिक बुलेटिन ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’ के मुताबिक 60 फीसदी से अधिक एफडीआई प्रत्यक्ष तौर पर विनिर्माण, कंप्यूटर सेवाओं, बिजली व अन्य ऊर्जा, खुदरा व थोक व्यापार और वित्तीय सेवाओं में आया था। एफडीआई के प्रमुख स्रोत देश सिंगापुर, मॉरीशस, अमेरिका, नीदरलैंड, जापान व यूएई थे और इन देशों से करीब 80 फीसदी एफडीआई आया।

वैश्विक निवेश परिदृश्य में अनिश्चितता के बावजूद भारत एशिया में अपनी अन्य समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में पसंदीदा गंतव्य रहा। वर्ष 2024 के एफडीआई भरोसा सूचकांक में उभरती मार्केट अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में भारत चौथे स्थान पर रहा था और यह देश की विकास संभावनाओं के प्रति आशावाद का प्रतीक है। इसके अलावा भारत ने व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता यूरोपियन मुक्त व्यापार एसोसिएशन (ईएफटीए) से किया है और इस समझौते में निवेश की प्रतिबद्धता भी की गई है।

अप्रैल 2024 की बुलेटिन में भारत की सेवाओं के निर्यात बुलेटिन के अनुसार पारंपरिक व आधुनिक निर्यात कई कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें विश्व की मांग, विनिमय दर, विनिर्माण निर्यात, आधारभूत ढांचा, मजबूत संस्थान, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और वित्तीय विकास शामिल हैं।

 

First Published : April 23, 2024 | 10:45 PM IST