वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की जैसलमेर में हुई 55वीं बैठक में साफ किया गया कैरेमल वाले पॉपकॉर्न पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा, जिसकी विशेषज्ञों द्वारा आलोचना की जा रही है। विशेषज्ञों का तर्क है कि इसकी वजह से अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था और जटिल होगी। जीएसटी परिषद की बैठक के बाद वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि खाने के लिए तैयार पॉपकॉर्न, जिसमें नमक और मसाले मिले होते हैं, उस पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा, जबकि इस तरह के पॉपकॉर्न को पैकेट बंद और लेबल लगाकर आपूर्ति करने पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगेगा।
इसमें कहा गया है, ‘हालांकि पॉपकॉर्न में जब चीनी मिलाई जाती है तो उसका गुण बदलकर चीनी से बनी कन्फेक्शनरी (जैसे कैरेमल पॉपकॉर्न) जैसा हो जाता है। तो इस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा। पिछले मसलों को जैसा है, उसी रूप मे जारी रखने का फैसला किया गया है।’
इसमें आगे कहा गया है कि इस मामले में किसी तरह का कोई नया कर नहीं लागू किया गया है और सिर्फ स्पष्टीकरण दिया गया है, क्योंकि कुछ क्षेत्रीय इकाइयां इस पर स्पष्टीकरण की मांग कर रही थीं। इसमें कहा गया है, ‘इसलिए व्याख्या से उत्पन्न विवादों से निपटने के लिए जीएसटी परिषद ने इस तरह के स्पष्टीकरण की सिफारिश की है।’
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साल 2015 में जीएसटी के तहत संभावित कर की दरों पर विचार करने के लिए बनी समिति की अध्यक्षता कर चुके पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है। यह जीएसटी के अच्छे व आसान कर व्यवस्था की भावना के विपरीत है। इस मूर्खता से जटिलता और बढ़ गई है। हम सरलता की ओर बढ़ने के बजाय अधिक जटिलता, प्रवर्तन की कठिनाई और तर्कहीनता की दिशा में बढ़ रहे हैं। दुखद है।’
जम्मू-कश्मीर के पू्र्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू ने भी एक्स पर पोस्ट करके दुख जताया है। उन्होंने लिखा, ‘हम उस दौर में जा रहे हैं, जब फीते वाले जूतों और बगैर फीते वाले जूतों पर बिक्री कर की दरें अलग-अलग थीं। इसी तरह फीते वाले लेकिन रबर के तल्ले वाले जूतों पर भी अलग कर था। निश्चित रूप से चमड़े वाले तल्ले के जूतों पर कर बहुत ज्यादा होता था। यहां वैश्विक मसला यह बन गया है कि कैरेमलाइज्ड पॉपकॉर्न को नमकीन माना जाए या मीठा!’
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य रथिन रॉय ने कहा, ‘अज्ञानता वाली, गलत जानकारी वाली जीएसटी की डिजाइन और कार्यान्वयन, राजस्व तटस्थता जैसे मसलों पर असहमति, प्रशासनिक अयोग्यता और कम जानकार राजनीतिक प्रतिष्ठान पर हावी असफरशाही- इसका परिणाम यह है कि जीएसटी हास्यास्पद बन गया। एक विचित्र और तुच्छ कर सामने आया है।
बहरहाल जीएसटी परिषद की बैठक के बाद शनिवार को मीडिया को जानकारी देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि यह स्पष्टीकरण जरूरती था क्योंकि चीनी वाले खाद्य उत्पादों पर एकसमान कर है और नमकीन खाद्य उत्पादों की तुलना में इस पर अधिक जीएसटी दर है।
उन्होंने कहा, ‘जब आप बाहर बैठकर देखते हैं तो यह मूर्खतापूर्ण लगता है। यह लगता है कि पॉपकॉर्न पर इतनी चर्चा की जरूरत है या नहीं। लेकिन जब आप राज्य फिटमेंट कमेटी की बैठक में भाग लेते हैं तो वे साफतौर पर कहते हैं कि हम कॉर्बोनेटेड ड्रिंक और जूस जैसे चीनी पड़ने वाले उत्पादों को अलग तरीके से देखते हैं। तो जब तक पॉपकॉर्न में नमक और मसाले होंगे उस पर 5 प्रतिशत कर लगेगा। लेकिन जब हम उसमें कैरेमलाइज्ड चीनी मिला देते हैं तो वह नमकीन नहीं रह जाता। यही वजह है कि उस पर कर की दर अलग है।’
खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर बृजेश कोठारी ने कहा कि पॉपकॉर्न की विभिन्न रूपों में आपूर्ति और उस पर लगने वाले कर पर स्पष्टीकरण से सिनेमा उद्योग या मल्टीप्लेक्स पर संभवतः कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि सिनेमाघरों में बिकने वाले फूड और बेवरिज रेस्टोरेंट सेवा में आते हैं और इस पर बगैर इनपुट क्रेडिट के 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है।