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विस्तार बनाम मंदी

Last Updated- December 05, 2022 | 4:24 PM IST

ऊर्जा और सामग्रियां देर से विस्तारित होने वाले क्षेत्र हैं और उन्हें चिरकालिक मंदी शुरू होने के पहले शीर्ष पर पहुंचने वाले क्षेत्रों में अंतिम क्षेत्र होना चाहिए । यह क्लासिकीय क्षेत्रीय बारी का तर्क है जिसके अनुसार आर्थिक चक्र की वृद्धि की शक्ति ऊर्जा और सामग्रियों के लिए मांग का कारण बनती है और उच्चतर कीमतों की ओर ले जाती है। और जब यह होता है तो सौदा स्पष्ट हो जाता है कि कुछ न कुछ होने वाला है, या तो सामग्रियों या फिर ऊर्जा की कीमतें में गिरावट आएगी या फिर आर्थिक वृद्धि धीमी पड़ेगी।
बदकिस्मती से, इस बार आर्थिक वृद्धि स्थानीय के मुकाबले ज्यादा वैश्विक है और इस तरह से ऊर्जा और सामग्री की कीमतें स्थानीय के मुकाबले वैश्विक कारकों से कहीं अधिक प्रेरित है। यही वह कारण है कि केंद्रीय बैंकर्स या नीति निर्माता या ओईसीडी देश सोने, तेल या धातु की कीमतों को कम करने के लिए कुछ अधिक नहीं कर सकते। तभी तो हमेशा की तरह इतिहास दुहराएगा, लेकिन भिन्न तरीके से।  
यह वही तर्क है जिसे कि इक्विटी बाजारों तक विस्तारित किया जा रहा है। तर्क यह है कि 80 फीसदी बाजार के घटक एक साथ ऊपर की ओर बढ़ते हैं और 90 फीसदी बाजार के घटक एक साथ गिरते हैं। सामग्रियों और ऊर्जा का क्षेत्र जिस तरह से बढ़ रहा हैउसे देखते हुए उसे बाजार के प्रत्येक दूसरे क्षेत्र से बेहतर परिणाम देना चाहिए। और तभी तो एक ही समय में विस्तार और मंदी की बात हो रही है। ऐसे उद्योग भी होंगे जो कि ऊर्जा क्षेत्र की इस तेजी से लाभ उठाना जारी रखेंगे जो कि कुछ वर्षों से अधिक समय तक बनी रह सकती है और दूसरी तरफ यह बढ़ती हुई तेजी अन्य क्षेत्रों और समग्र अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हुए असंतुलन उत्पन्न करेगी। 100 डालर प्रति बैरल का तेल हममें से अधिकतर के लिए अच्छा नहीं है लेकिन कुछ लोग फायदा उठाएंगे। अत: जैसा कि हमेशा होता है कुछ क्षेत्रों में संपदा का निर्माण अन्यत्र संपदा के विनाश की ओर ले जाएगा – एक का नुकसान होने पर ही दूसरे का फायदा होने की क्लासिकीय स्थिति।
हालांकि इस समय के लिए, आइए रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओएनजीसी, टाटा स्टील और हिंडाल्को समेत ऊर्जा और सामग्री क्षेत्र के स्टॉकों पर विचार करें। उनका प्रदर्शन इस बात का संकेत नहीं देता कि सट्टेबाजी खूब जोरों पर है, इसके बाजय इससे यह संकेत मिलता है कि सामग्रियों एवं ऊर्जा घटक क्षेत्र पर नयी ऐतिहासिक ऊंचाइयां अभी भी लंबित हैं।
यह कहना आसाना है कि गिरते हुए बाजार से निकल आइए और उस समय प्रवेश कीजिए जब वहां रौनक आ गयी हो। लेकिन ऊपर उठते बाजारों में गिरता स्टाक और गिरते हुए बाजारों में उठता हुआ स्टाक ढूंढ़ पाना मुश्किल है। अब, बाजार गिर रहे हैं और चारों ओर भय व्याप्त है। नयी ऊंचाई का आह्वान चुनौतीपूर्ण है। इस समय जो बात ज्यादा निश्चित जान पड़ती है वह यह है कि मंदी से पहले ज्यादा विस्तार होगा और यहां तक कि मंदी के आने पर भी हो सकता है कि पुनर्गठन धारदार एवं ज्यादा अस्थिर हो लेकिन क्षेत्रीय प्रदर्शन और अच्छे स्टॉक का चयन फिर भी वास्तविक संपदा सृजित कर सकता है। और यहां तक कि मंदी की बातों के सही होने पर भी एमसीएक्स मेटल्स सूचकांक नयी ऐतिहासिक ऊंचाइयों की ओर दौड़ता नहीं नजर आएगा, जबकि बाजार ‘बेचने के दबाव’ तले हैं। 
 णवैसे, क्या दबाव हो सकता है यही वह चीज है जिस पर सवाल करने की जरूरत है? डो जोन्स ऐतिहासिक मुश्किल से 10 प्रतिशत नीचे गिरा होगा, जबकि तकरीबन 2.3 ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक नुकसान के कारण इतने सारे लोग बेघर हो गये और दीवालिया होने के मामले बढ़ रहे हैं। यह निश्चित विनाश जारी रहेगा, लेकिन समस्त रूप से बाजार और क्षेत्र किस प्रकार से व्यवहार करते हैं इसकी वृहत आर्थिक, अंत:बाजार आस्तियों की आवर्ती समझदारी और जनता के मनोविज्ञान पर मजबूत पकड़ की जरूरत होगी। जनवरी लो का आह्वान इसी समय किया गया और बीएसई ऑयल के लिए 10,000, बीएसई बैंकेक्स के लिए 10,000, बीएसई सेंसेक्स के लिए 18,000 और बीएसई कैपिटल गुड्स के लिए 16,000 पर जोर देते हुए। अब हमारे पीछे जनवरी में आये उतारों को महसूस करने के बाद फरवरी का आखिरी हफ्ता पहले से ही हमारे ऊपर तारी है, मार्च महीने के उतार अगर कोई होते हैं तो उन्हें सीमांत होना चाहिए। और यहां तक कि बाजार अगर मार्च के उतारों की ओर बढ़ते हैं तो ढेर सारे अंतर-बाजार और अंतर-क्षेत्रीय विचलन प्रत्याशित हैं। इसका यह मतलब यह हुआ कि हालांकि कुछ स्टॉक और नीचे जा सकते हैं पर निरपवाद रूप से ऐसे क्षेत्र भी होंगे जो कि थोड़ा अधिक स्टॉक, क्लासिकीय बहु-माह का आधार बना रहे होंगे। हिंडाल्को इसी बात का संकेत दे रहा है, सुदृढीकरण का स्पष्ट पैटर्न, मंदी के रुख के मुकाबले अधिक तेजी का रुख। इसी प्रकार के पैटर्न को अन्य धातुओं एवं सामग्रियों के क्षेत्र के घटकों पर देखा जा सकता है।
 यह बात नहीं भुलाई जानी चाहिए कि मंदी के रुख वाले बाजार समय को चुनौती दे रहे हैं और यही वे बाजार हैं जहां पर व्यापार के सर्वश्रेष्ठ अवसर मिलते हैं। विस्तार एवं मंदी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और बहुत संभव है कि वैश्विक मंदी पहले से ही छा रही हो, लेकिन जिस तरह से यह हमारे आर्थिक जीवन में प्रवेश कर रही है उस पर बहुत अधिक ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
लेखक आरफियस कैपिल्स, दि ग्लोबल अलटरनेटिव रिसर्च कंपनी के सीईओ हैं।



 

First Published - March 2, 2008 | 8:36 PM IST

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