भारत और अन्य विकासशील देशों जैसे चीन, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन बॉर्डर समायोजन व्यवस्था (CBAM) और वन की कटाई अधिनियम जैसे एकतरफा व्यापार नीति के कदमों का विरोध किया है।
यूरोपीय संघ की व्यापार नीति समीक्षा के दौरान भारत ने कहा कि द्विपक्षीय आर्थिक व वाणिज्यिक संबंध बढ़ रहे हैं, वहीं कुछ ‘चिढ़ाने वाली बातें’ व्यवधान का काम कर रही हैं और दोनों पक्षों को अपनी आर्थिक साझेदारी का पूरा लाभ हासिल करने से रोक रही हैं। इसमें कहा गया है, ‘हमने पाया है कि समीक्षा की अवधि के दौरान यूरोपीय संघ के एकपक्षीय व्यापार नीति के कदमों में वृद्धि हुई है और इसकी वजह से भारत सहित उसके कारोबारी साझेदारों पर नकारात्मक असर पड़ा है।’
इसमें कहा गया है, ‘जलवायु और पर्यावरण संबंधी नीतियां स्वीकार किए जाने, खासकर सीबीएएम, वनों की कटाई के नियम और वन क्षरण के नियम, कॉर्पोरेट सततता की कवायद के प्रस्ताव, अधिकतम अवशेष स्तर (एममआरएल) और इससे जुड़ी शक्तियां यूरोपीय संघ के सदस्यों को दिए जाने से समस्या है और यह उत्पाद की श्रेणी की वस्तुओं के कारोबार में गैर शुल्क बाधा के रूप में काम कर रहा है।’
Also read: RBI ब्याज दर पर यथास्थिति बनाए रख सकता है: विशेषज्ञ
भारत ने कहा कि इन कदमों के मौजूदा कारोबार की मात्रा और भविष्य की व्यापार क्षमता पर दूरगामी असर होंगे। इसमें कहा गया है, ‘इन कदमों से डब्ल्यूटीओ की क्षमता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं और डब्ल्यूटीओ के सदस्यों के बीच इस मसले पर गंभीरता से चर्चा की जरूरत है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि ये व्यापारिक कदम डब्ल्यूटीओ के नियमों और बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के अनुकूल है।’
चीन ने कहा कि यह देखना अफसोसजनक है कि यूरोपीय संघ द्वारा सीबीएएम जैसे उठाए गए कदम जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रारूप और पेरिस समझौते के साथ डब्ल्यूटीओ के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। चीन ने कहा है, ‘दरअसल इस तरह के कदम आयातित उत्पादों के खिलाफ भेदभाव वाले हैं और खासकर विकासशील देशों की बाजार तक पहुंच कम करते हैं। यूरोपीय संघ का नेट जीरो उद्योग अधिनियम भी बाजार की हिस्सेदारी कम करेगा, जो बाजार सिद्धांतों और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के बुनियादी नियमों के विपरीत है।’
इंडोनेशिया ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यूरोपीय संघ की सीबीएएम और वनों की कटाई पर नियम सहित नई व्यापार रणनीति से अनावश्यक रूप से व्यापार में व्यवधान पैदा होगा। खासकर गैर यूरोपीय संघ के देशों और यूरोपीय संघ के उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करने वाले उत्पादों जैसे कॉफी, रबर, प्रसंस्कृत लकड़ी और पाम ऑयल पर इसका विपरीत असर होगा।
इंडोनेशिया ने कहा है, ‘हमारा मानना है कि यह नीति छोटे और मझोले उद्यमों पर भी बुरा असर डालेगी।’ दक्षिण अफ्रीका ने कहा है कि यूरोपीय संघ के हाल के व्यापार नीति की दिशाएं उसके कारोबारी साझेदारों पर उल्लेखनीय असर डालेंगी और इससे यूरोप के बाजार तक उनकी पहुंच कम होगी।
Also read: सीमेंट कंपनियों के बीच बाजार हिस्सेदारी को लेकर तेज होगी जंग!
उसने कहा है, ‘इससे इस बात पर भी विचार करने की जरूरत बढ़ जाती है कि हम वैश्विक साझा मसलों पर बहुपक्षीय सहयोग को कैसे बढ़ा सकते हैं। क्या एकतरफा संरक्षणवादी व्यवस्था और नीतियां कोई समाधान हैं और इनका डब्ल्यूटीओ के नियमों पर क्या असर पड़ेगा।’
नई दिल्ली के थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव ने अनुमान लगाया है कि सीबीएएम से भारत के धातु उद्योग पर असर पड़ेगा क्योंकि भारत का करीब 27 प्रतिशत लोहे, स्टील और एल्युमीनियम का निर्यात कैलेंडर वर्ष 2022 में यूरोपीय संघ को हुआ है, जिसकी कीमत 8.2 अरब डॉलर है।
अपनी प्रतिक्रिया में यूरोपीय संघ ने साफ किया है कि सीबीएएम व्यापारिक कदम नहीं है, बल्कि जलवायु पर केंद्रित पर्यावरण नीति है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि हम अपने जलवायु लक्ष्यों तक पहुंच सकें।
इसमें कहा गया है, ‘इसे आयातित उत्पादों पर उनके वास्तविक उत्सर्जन के रूप में समान रूप से और गैर भेदभावपूर्ण तरीके से लागू किया जाएगा। यूरोपीय संघ के बाहर भुगतान की गई किसी भी प्रभावी कार्बन कीमत को संज्ञान में रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि सीबीएएम चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे लागू होगा। 2026 के पहले किसी वित्तीय समायोजन का भुगतान नहीं होगा। अक्टूबर 2023 से शुरू होने वाली इस योजना में संक्रमणकालीन अवधि दी गई है, जिससे भागीदारों को पर्याप्त वक्त मिल सके। यूरोपीय संघ कारोबारी भागीदारों को प्रतिक्रिया और विचार रखने का अवसर देगा।