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  अर्थव्यवस्था  कोविड से पहले के स्तर पर अर्थव्यवस्था के पहुंचने का अनुमान
अर्थव्यवस्था

कोविड से पहले के स्तर पर अर्थव्यवस्था के पहुंचने का अनुमान

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —September 27, 2021 11:32 PM IST
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देश में कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के कई मानक अब धीरे-धीरे महामारी के पहले के स्तर पर लौट रहे हैं, ऐसे में संभव है कि अर्थव्यवस्था दो साल पहले जिस स्थिति में थी आखिरकार उसी स्तर पर होगी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अब भी कोविड से पहले की अवधि 2019-20 की समान तिमाही की तुलना में 9.2 प्रतिशत कम था। लेकिन अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि जीडीपी तीसरी तिमाही तक महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच जाएगी।

इन उम्मीदों की वजह कुछ संकेतकों के बेहतर आंकड़े हैं। उदाहरण के तौर पर जुलाई में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़े, पिछले वित्त वर्ष के समान महीने की तुलना में केवल 0.3 प्रतिशत ही पीछे था। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर कहती हैं कि आईआईपी में शामिल विनिर्माण सूचकांक जुलाई 2021 में, पिछले साल अक्टूबर 2020 के त्योहारी सीजन के समान ही उच्च स्तर पर था जो कोविड की दूसरी लहर के बाद मजबूत सुधार की झलक देता है।

विनिर्माण सूचकांक, पिछले साल के त्योहारी सीजन अक्टूबर 2020 (132.0) के समान ही जुलाई 2021 में 130.9 के स्तर पर था जो दूसरी लहर के बाद इसमें सुधार की मजबूती दर्शाता है। आईआईपी औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन की मात्रा पर आधारित सूचकांक है जबकि जीडीपी में उद्योग की स्थिति मूल्यवर्धित है। ऐसे में जरूरी नहीं कि यह संख्या मेल ही खाती हों। उदाहरण के लिए, मारुति एस-प्रेसो और मारुति विटारा ब्रेजा के आने से आईआईपी में समान अंक जुड़ जाएंगे लेकिन जीडीपी गणना में इनके मूल्य अलग-अलग हैं।

क्वांटईको रिसर्च की अर्थशास्त्री युविका सिंघल का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक सकल घरेलू उत्पाद व्यापक रूप से महामारी से पहले के स्तर पर वापस आ जाएगा। वह कहती हैं, ‘ज्यादातर संकेतक औसत स्तर पर पहुंचेंगे लेकिन इसमें भिन्नता भी आएगी। विनिर्माण सेवाओं से बेहतर होगा, गैर-टिकाऊ वस्तुएं, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं से बेहतर होंगी वहीं बड़ी कंपनियां छोटे और मझोले उद्योगों (एमएसएमई) से बेहतर होंगे।’

हालांकि यह थोड़ा पेचीदा है कि आखिर अगस्त में आईएचएस मार्किट परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) 52.3 और पीएमआई सर्विसेज 56.7 पर क्यों था। इसकी एक संभावित वजह यह बताई जा सकती है कि निजी क्षेत्र के सर्वेक्षणों के अनुमान से महीने के आधार पर पीएमआई तैयार होता है। वहीं दूसरी तरफ , विनिर्माण के मामले में पिछले महीने का आधार 55.3 था जबकि सेवा क्षेत्र के लिए यह 45.4 था। 50 से नीचे का अंक संकुचन का संकेत देता है जबकि इससे ऊपर की संख्या विस्तार को दर्शाती है। ऐसे में विभिन्न सेवाओं जैसे रेस्तरां आदि के खुलने से अगस्त में पीएमआई को बढ़ावा मिला, वहीं विनिर्माण क्षेत्र में ऐसा नहीं हुआ।

अन्य मापदंडों में, निर्यात कोविड से पहले के स्तर की तुलना में अधिक रहा है। जुलाई में निर्यात सालाना आधार पर करीब 50 फीसदी अधिक था जबकि अगस्त में वृद्धि लगभग 46 प्रतिशत कम हो गई। चालू वित्त वर्ष के दौरान पांच महीने में हर महीने निर्यात कोविड दौर के पहले के स्तरों से अधिक रहा।

कोई यह तर्क दे सकता है कि यह मुख्य रूप से बाहरी मांग के कारण था। लेकिन घरेलू मांग का संकेत देने वाले, गैर-तेल, गैर-सोना का आयात 2019 में अगस्त महीने की तुलना में इस साल अगस्त में 4.32 प्रतिशत ऊपर था। वे 2019 के समान महीने की तुलना में जुलाई में सिर्फ 1.15 प्रतिशत अधिक थे।

इसके अलावा, वित्त वर्ष 2022 के पहले पांच महीनों में हर महीने कर कोविड के पहले के स्तर से अधिक रहा है। ऐसा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड के बीच डेटा की बेहतर साझेदारी और जीएसटी में ई-चालान के अनिवार्य उपयोग के वजह से संभव हो सकता है।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के आर्थिक सलाहकार सेवाओं के प्रमुख रानेन बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था स्पष्ट रूप से कोविड के पहले के स्तर पर वापस आ रही है। वह कहते हैं, ‘हमें इस बात से अवगत होने की आवश्यकता है कि लगभग दो वर्षों की राष्ट्रीय आमदनी कोविड के कारण खत्म हो गई है और इसका कुल मांग पर प्रभाव पड़ेगा। अर्थव्यवस्था कोविड से पहले भी धीमी हो रही थी और इसका कोविड से पहले के स्तर पर ही वापस आना भारत के लिए पर्याप्त नहीं है।’ 

वह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार को और बढ़ाने और इसे कोविड से पहले के स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता है। वह कहते हैं, ‘मौद्रिक और राजकोषीय नीति का समर्थन अनिवार्य है क्योंकि निजी क्षेत्र के कदमों से पहले जरूरी मदद देने के लिए राजकोषीय नीति को एक असंगत बोझ ढोना पड़ता है।’

उनका कहना है कि बैड बैंक से संबंधित कुछ हाल की नीतिगत घोषणाएं, पिछली तारीख से लागू होने वाले कराधान, दूरसंचार कंपनियों को राहत और उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं सरकार द्वारा उठाए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम हैं लेकिन उनका कहना है कि ये ऐसे स्मार्ट बूस्टर हैं जिनका कोई तत्काल राजकोषीय असर नहीं होगा। इक्रा की नायर कहती हैं कि भले ही त्योहारी सीजन से पहले आर्थिक गतिविधियों में सुधार जारी है लेकिन अगस्त में कम बारिश, सितंबर में भारी वर्षा की वजह से खनन, बिजली और निर्माण जैसे क्षेत्रों में रुझान पर असर पडऩे की संभावना है क्योंकि सेमीकंडक्टर्स से संबंधित आपूर्ति से जुड़े मसले की वजह से भी वाहन क्षेत्र का उत्पादन बाधित हो रहा है। ट्रेनों द्वारा माल ढुलाई चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में हर महीने कोविड से पहले के स्तर की तुलना में अधिक थी। यह वैसे भी सालाना आधार पर अधिक था हालांकि वृद्धि की गति पिछले महीने की तुलना में पहले पांच महीनों में से हर महीने कम हो रही है। ऐसा पिछले वित्तीय वर्ष में कम आधार प्रभाव के कारण हो सकता है जो अप्रैल में सबसे कम था और लॉकडाउन में ढील दिए जाने की वजह से धीरे-धीरे बढ़ गया। साल-दर-साल वृद्धि, रेलवे की माल ढुलाई दरों में कटौती और पिछले साल लॉकडाउन अवधि के दौरान विपणन योजनाओं के पेश किए जाने की वजह से भी रही।

कई कर्मचारी अब भी घर से काम कर रहे हैं, इसके बावजूद जुलाई और अगस्त में पेट्रोल की खपत कोविड से पहले के स्तर से अधिक हो गई। हालांकि, चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में हर महीने वाहन पंजीकरण कोविड से पहले के स्तर से नीचे था। यह दोपहिया वाहनों की धीमी बिक्री के कारण हो सकता है जिसकी वजह कोविड-19 की वजह से अनौपचारिक क्षेत्र और एमएसएमई का प्रभावित होना है।

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