भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)ने एक्सचेंज पर मुद्रा वायदा कारोबार प्रारंभ करने की घोषणा की है।
मुद्रा वायदा कारोबार किसी एक्सचेंज पर ट्रेड किया जाने वाला एक स्टैंडर्डाइज कॉन्ट्रैक्ट है। इसका इस्तेमाल एक अंडरलाइंग एसेट(इस स्थिति में एक्सचेंज रेट)की, आज निर्धारित की गई कीमत पर भविष्य में की जाने वाली खरीद या बिक्री के लिए किया जाता है।
रिजर्व बैंक ने पहले प्रतिभागियों के तौर पर बैंकों और ब्रोकरों को उपयुक्त एक्सचेंज में यह कारोबार करने की अनुमति दे दी है। आरबीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि इस कारोबार में प्रवेश करने वाली कंपनियों को इस बात का खुलासा करना होगा कि उनके वार्षिक खाते में अनहेज्ड एक्सपोजर हैं। कंपनी उनका इस्तेमाल उसी हाल में कर सकती है जब उनके पास अंडरलाइंग डॉलर -रूपी पोजिशन या ट्रेड हो।
इसके अलावा बाजार के स्थिर हो जाने पर विदेशी संस्थागत निवेशकों और अप्रवासी भारतीयों को भी इस कारोबार में हेजिंग करने की अनुमति होगी। इस संबंध में संबंधित बैकों को अपनी कुशलता के आधार पर इस बात की निश्चतता तय करनी होगी कि संकट के वक्त भी वो सहयोगात्मक रूख बनाये रखेंगे और संकट का मिलकर समाधन करेंगे।
आरबीआई का मानना है कि एक रेगुलेटेड इंटिटी के नाते यह ट्रेडिंग कम क्लीरिंग अकाउंट्स की भांति काम करेगा। जिसमें अपने खाताधारकों के अकाउंट्स क्लीर करने के अलावा बाजार को तरलता प्रदान करने के प्रावधान भी रहेंगे।
ब्रोकरों को इस कारोबार को करने की अनुमति उनके मार्केट रेपुटेशन, भागीदारी, कुल मिल्कियत को देखकर दी जाएगी। इस बाबत उत्पाद को रॉल आउट करने के लिए किसी भी मौजूदा एक्सचेंज का चुनाव किया जा सकता है। इलिजिबिल एक्सचेंज के लिए हालांकि एक अलग सेंगमेंट की जरूरत होगी,जिसके लिए अलग सदस्यता,कारोबार नियम और रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क होगा।
इस संबंध में एक संयुक्त प्रवर समिति होगी जिसके सदस्य आरबीआई और सेबी के होंगे। साथ ही,इस संबंधी दिशा-निर्देश मई 2008 तक आ जाएंगे। इस कारोबार की खास बात यह है कि रेजीडेंट्स पर किसी भी प्रकार के क्वांटिटिव अवरोध न थोपे जाएं ताकि जब कभी एक रूपये डॉलर कॉन्ट्रैक्ट हों तो भी कारोबार प्रभावित न हों। साथ ही यूरो-रूपी कॉन्ट्रैक्ट की अनुमति अगले छह महीनों के बाद दी जा सकती है।