भारत की जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाने में निवेशकों की सहायता करने और टिकाऊ तकनीक व गतिविधियों में ज्यादा संसाधन लगाने के लिए वित्त मंत्रालय ने बुधवार को बहुप्रतीक्षित क्लाइमेट फाइनैंस टैक्सोनॉमी फ्रेमवर्क का मसौदा जारी किया।
इस फ्रेमवर्क का लक्ष्य जलवायु के अनुकूल तकनीकों के लिए धन मुहैया कराना और बिजली, मोबिलिटी, कृषि और जल प्रबंधन जैसे क्षेत्रों के साथ स्टील, सीमेंट और लोहा जैसे कठिन क्षेत्रों में शोध के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करना है। इसका मकसद ग्रीनवाशिंग को रोकना और वित्तपोषण पर नजर रखने में सुधार करना भी है।
मसौदा फ्रेमवर्क में 3 प्रमुख मकसद पर ध्यान दिया गया है। इसमें शमन (मिटिगेशन), अनुकूलन (अडाप्टेशन) तथा कठिन-से-कम कठिन सेक्टर में बदलाव करना शामिल है। इसमें हाइब्रिड अप्रोच का सुझाव दिया गया है, जिसमें गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों ही तत्व शामिल है। इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना है। शुरुआत में गुणात्मक मानदंड एक समग्र टैक्सोनॉमी व्यापक वर्गीकरण करेगा। यह राष्ट्रीय प्राथमिकताओं जैसे समावेशी विकास, 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन और विश्वसनीय ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने के अनुरूप होगा।
क्लाइमेट फाइनैंस टैक्सोनॉमी को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीति निर्माताओं और निवेशकों को उन परियोजनाओं या क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिन्हें धन मुहैया कराए जाने की जरूरत है और वे देश के समग्र जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप हैं। क्लाइमेट फाइनैंस के विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु के अनुरूप या वास्तव में हरित निवेश को परिभाषित करना विकासशील देशों में क्लाइमेट फाइनैंस के लिए एक आवश्यक कदम है।
भारत में इस समय साफ परिभाषा न होने के कारण परियोजना की सततता के हिसाब से जोखिम और अनिश्चितता को देखते हुए निवेशक इस दिशा में कदम बढ़ाने से हिचकिचाते हैं। यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि किसी परियोजना, सेवा या व्यवसाय संचालन की स्थिरता के बारे में भ्रामक और झूठे दावे क्लाइमेट फाइनैंसिंग के मामले में बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं।
सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) में रिसर्च एसोसिएट कृतिमा भाप्टा ने कहा, ‘एक बार जब फ्रेमवर्क अंतिम रूप ले लेगा, निवेशकों के सामने ज्यादा स्पष्टता होगी।’ इस टैक्सोनॉमी का एक उल्लेखनीय पहलू यह है कि इसमें सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों पर द्यान केंद्रित किया गया है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका बताई गई है। यह इसे कई अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरणों से अलग करता है, जिनमें यूरोपीय संघ के वर्गीकरण भी शामिल हैं।
केपीएमजी में भारत में ईएसजी की नैशनल हेड नम्रता राणा ने कहा, ‘जिन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन कम करना कठिन है, उनके लिए यह ढांचा कंपनियों के लिए कार्बन कम करने के रास्ते का समर्थन करेगा। बेहतर तरीके से परिभाषित ग्रीन टैक्सोनॉमी वित्तीय संस्थाओं को वह स्पष्टता प्रदान करेगी, जो उनके लिए जलवायु अनुकूलन और शमन में निवेश को लेकर आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी है। यह इस क्षेत्र में भरोसा और पारदर्शिता बनाने के लिए है, जिससे धन आ सके। कम कार्बन वाले आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र की ओर भारत के कदम हमें अद्वितीय प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करेंगे।’
ईवाई इंडिया में क्लाइमेट चेंज व सस्टेनिबिलिटी सर्विस में पार्टनर हिना खुशालानी ने उम्मीद जताई कि क्लाइमेट फाइनैंस टैक्सोनॉमी से आने वाले वर्षों में निवेश को गति मिलेगी और प्रमुख प्रभावशाली संस्थान अपने नेट जीरो मार्ग विकसित करेंगे। खुशालानी ने कहा कि तमाम महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैंकों ने नेट जीरो ट्रांजिशन योजनाएं बनाई हैं, वहीं भारतीय बैंकों द्वारा अगले 2 साल में नेट जीरो लक्ष्य घोषित किए जाने की संभावना है।