भारत सरकार ने खतरनाक उद्योगों में बाल श्रम को प्रतिबंधित किया है। 2 वर्ष पहले तो घरों और होटलों में भी बाल श्रम को प्रतिबंधित करने की कवायद की गई थी।
लेकिन इस बजट में वह उत्साह नही दिखा, क्योंकि इसबार भी इस मद में पहले साल की तरह 156 करोड़ रुपये ही आबंटित किये गए हैं।
श्रम मंत्रालय के अनुसार पूरे देशभर में अलग-अलग पेशों में कुल 1.2 करोड़ बच्चे कार्यरत हैं।
लेकिन इन बच्चों के विकास की दिशा में सरकार का रुख उदासीन नजर आ रहा है, क्योंकि इस आबंटित राशि के जरिये हर बच्चे को मात्र 10 रुपये का हिस्सा ही प्रतिवर्ष नसीब हो रहा है।
अगर इसबार और पिछली बार के बजट की तुलना की जाए तो राशि में मात्र 3 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है,जो नगण्य है।
दरअसल ये राशि उन बच्चों और महिलाओं के लिए आबंटित की जाती है, जो इस कठोर श्रम की अग्नि में झोंक दिए जाते हैं। इन्हीं बच्चों और महिलाओं के विकास के लिए इस तरह की राशियों का प्रावधान किया जाता है।
लेकिन इस आबंटित राशि का आंकलन किया जाए तो यह प्रति बच्चा 130 रुपये प्रतिवर्ष होता है, जो तकरीबन 10 रुपये प्रति माह के बराबर है।
लेकिन मंत्रालय इस मुद्दे पर अपना बचाव करते हुए एक अधिकारी के हवाले से कहती है कि यह राशि सभी काम करने वाले बच्चों के लिए नही है।
यह राशि देश के 250 जिलों में चल रहे 9,000 राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना विद्यालयों के लिए आबंटित किए गए हैं। इन विद्यालयों में 9 वर्ष से 14 वर्ष तक के 4.5 लाख बच्चे मौजूद हैं।
इसके अलावा अन्य 1.2 करोड़ बच्चों के लिए मंत्रालय पिछले तीन वर्षों से फंड का इंतजार कर रही है। इसी संदर्भ में बाल श्रम विद्यालय के विकास की अनुशंसा भी प्रस्तावित है।
हालांकि 11 वीं योजना में ये मुद्दे ठंडे बस्ते में चली गई है। मंत्रालय उन बच्चों के लिए एक आवासीय विद्यालय भी प्रस्तावित करने की योजना बना रही है,जो बाल श्रम का दंश झेल चुके हैं।
लेकिन यह प्रस्ताव कब कार्यान्वित होगा, कहना मुश्किल है।
बजट में इन बच्चों की पुनर्स्थापना का मुद्दा तो वंचित रहा ही, साथ ही वे 9000 बाल श्रम विद्यालय भी तिरस्कृत रहे हैं।
जो राशि आबंटित की गई है, उसके हिसाब से इन बाल श्रम विद्यालयों के प्रत्येक बच्चों को 3,466 रुपये प्रतिवर्ष मिलेगा।
दूसरे शब्दों में कहें तो इन विद्यालयों में रहने वाले बच्चों को प्रतिदिन 9 से 10 रुपये मिलेगा, जो 10 रुपये प्रतिमाह की तुलना में जरुर बेहतर है।
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