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Last Updated- December 14, 2022 | 8:25 PM IST

भारत कैलेंडर वर्ष 2021 में एशिया की सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था बन सकता है। अगर नोमुरा के पूर्वानुमानों पर यकीन करें, तो ऐसा ही है। इस विदेशी अनुसंधान और ब्रोकरेज हाउस को इस बात की उमीद है कि भारतीय अर्थव्यवस्था, जिसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से मापा जाता है, वर्ष 2021 में 9.9 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी जो इस अवधि में चीन (वर्ष 2021 में इसके जीडीपी की विकास दर नौ प्रतिशत आंकी गई है) और सिंगापुर (7.5 प्रतिशत की दर से) को पीछे छोड़ देगी।
नोमुरा ने वर्ष 2021 में भारत के दृष्टिकोण का रुख सकारात्मक कर दिया है और उसका मानना है कि देश चक्रीय सुधार के शीर्ष पर है। इस रुख में यह बदलाव लगभग दो साल बाद (वर्ष 2018 के आखिर से) आया है, जब भारत की वृद्धि पर उसका रुख नकारात्मक हो गया था।
नोमुरा में प्रबंध निदेशक और भारतीय अर्थव्यवस्था प्रमुख सोनल वर्मा ने ओरादीप नंदी के साथ तैयार की 8 दिसंबर की रिपोर्ट – एशिया-2021 आउटलुक में लिखा है कि हमारा अनुमान है कि वर्ष 2021 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि नकारात्मक क्षेत्र (-1.2 प्रतिशत) में बनी रहेगी जो मूल प्रभावों के आधार पर दूसरी तिमाही के दौरान बढ़कर 32.4 प्रतिशत हो जाएगी। तीसरी तिमाही में 10.2 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.6 प्रतिशत गिरावट से पहले ऐसा होगा। कुल मिलाकर हमें उमीद है कि वर्ष 2020 की -7.1 जीडीपी के मुकाबले वर्ष 2021 में औसत वृद्धि दर 9.9 प्रतिशत रहेगी और वित्त वर्ष 21 में -8.2 प्रतिशत के मुकाबले वित्त वर्ष 22 (मार्च 2022 को समाप्त होने वाला वर्ष) के दौरान यह 11.9 प्रतिशत रहेगी।
दूसरी तिमाही के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में अपेक्षा से अधिक सुधार ने अधिकांश विश्लेषकों को हैरान कर दिया है। उदाहरण के लिए फिच रेटिंग्स को अब उमीद है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी में 9.4 प्रतिशत का संकुचन होगा, जो सितंबर 2020 में जताए गए 10.5 प्रतिशत के पूर्वानुमान से लगभग एक प्रतिशत अंक (पीपी) से कम है।
कोविड-19 टीके के संबंध में अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए नोमुरा को उमीद है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कैलेंडर वर्ष 2021 की पहली छमाही में उदारवादी रूख बनाए रखगा और पहली तथा दूसरी तिमाही के दौरान धीरे-धीरे तरलता की वापसी होगी और कैलेंडर वर्ष 21 की दूसरी तथा तीसरी तिमाही में तटस्थ रहेगा जिसके बाद वर्ष 2022 की शुरुआत में नीतिगत दर ज्यादा रहेगी। इसे उमीद है कि वर्ष 2021 की पहली छमाही के दौरान मुद्रास्फीति का औसत लगभग 5.5 प्रतिशत रहेगा जो दूसरी छमाही में गिरकर 4.1 प्रतिशत होगा।
प्रमुख जोखिम
अलबत्ता वर्ष 2021 सबसे तेजी से बढऩे वाले लेबल के साथ-साथ अपनी कुछ चुनौतियां भी लेकर आएगा। नोमुरा ने कहा कि वर्ष 2021 और उसके बाद की एक प्रमुख चिंता अब तक देखे गए ‘के’ आकार वाले सुधार के संबंध में है। उनके अनुसार अनियमित क्षेत्र में सुधार की धीमी रतार का मतलब यह है कि चक्रीय सुधार शायद खास सुधार न हो और इससे प्रति व्यक्ति आय कम हो सकती है, असमानता बढ़ सकती है तथा सरकार और सामाजिक तनावों से अधिक लोकलुभावन खर्चों का दबाव बन सकता है।
यह संरचनात्मक बैलेंस शीट की चुनौतियों के संबंध में भी चेतावनी देता है, विशेष रूप से वित्तीय क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए), दबावपूर्ण राजकोषीय स्थिति और कॉरपोरेट क्षेत्र में पूंजीगत व्यय की तुलना में ऋण कम करने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने के संबध में।
वर्मा और नंदी ने कहा कि रोजगार सृजन के अभाव के कारण इस चक्र का स्थायित्व अस्थिर रह सकता है।
हाल के त्योहारों के दौरान भीड़ के कारण संक्रमण के मामलों में हुए इजाफे, शुरुआती राहत के बाद छिपी हुई मांग में कमी, सरकार द्वारा घाटे को नियंत्रण में रखने की कोशिश से पहली तिमाही के व्यय पर दबाव तथा इस विश्वव्यापी महामारी के कारण यूरोप और अमेरिका में कमजोर विकास वे चार जोखिम हैं जो आगे चलकर आर्थिक विकास में मंदी को बढ़ावा दे सकते है।
वृहत स्तर पर नोमुरा को उमीद है कि वैश्विक वृद्धि वर्ष 2020 में नकारात्मक 3.7 की तुलना में बढ़कर वर्ष 2021 में 5.6 प्रतिशत हो जाएगी। वर्ष 2021 की पहली छमाही के दौरान औसत वृद्धि सालाना आधार पर लगभग 7.8 प्रतिशत रहेगी।

First Published - December 9, 2020 | 11:21 PM IST

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