देश में अगली जनगणना के साथ जाति की गणना भी की जाएगी। सरकार ने बुधवार को इस संबंध में फैसला किया और कहा कि पूरी प्रक्रिया को ‘पारदर्शी’ तरीके से अंजाम दिया जाएगा। इससे जातिगत आंकड़ों के संग्रह का मार्ग प्रशस्त होगा। जाति संबंधी आंकड़े पिछली बार 2011 के सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में एकत्र किए गए थे, लेकिन उसके विवरण कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। जनगणना के हिस्से के रूप में अंतिम व्यापक जातिगत गणना लगभग एक सदी पहले 1931 में की गई थी।
केंद्रीय मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्र सरकार में शामिल घटक दलों तेदेपा और जदयू के साथ-साथ बीजू जनता दल ने फैसले को ऐतिहासिक बताया वहीं कांग्रेस, सपा, राजद जैसे विपक्षी दलों ने भी इसका स्वागत किया और तय समयसीमा में इस प्रक्रिया को पूरी करने की मांग उठाई।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए बताया कि संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत, जनगणना एक केंद्रीय विषय है जो 7वीं अनुसूची में संघ सूची में 69 पर सूचीबद्ध है। यानी जनगणना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर जातिगत गणना गैर-पारदर्शी तरीके से इसे कराया है, जिससे समाज में संदेह पैदा हुआ है।
वैष्णव ने कहा, ‘इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीतिक दबाव में न आए, यह निर्णय लिया गया है कि जाति गणना को अलग सर्वेक्षण के रूप में आयोजित करने के बजाय मुख्य जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत होगा और देश की प्रगति बिना किसी बाधा के जारी रहेगी।
वैष्णव और बाद में सरकार ने अपने बयान में कहा कि स्वतंत्रता के बाद से आयोजित सभी जनगणना कार्यों से जाति को बाहर रखा गया था। उन्होंने 2011 में जाति जनगणना कराने में विफल रहने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर उंगली उठाई। इसमें कहा गया है कि जाति जनगणना के विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए 2010 में मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था और अधिकांश राजनीतिक दलों ने जातिगत गणना कराने की सिफारिश की थी। वैष्णव ने कहा, ‘इसके बावजूद पिछली सरकार ने जाति जनगणना के बजाय सर्वेक्षण का विकल्प चुना, जिसे सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के रूप में जाना जाता है।’
दूसरी ओर, भारत जोड़ो अभियान से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि यह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार थी, जो 2001 की जनगणना के हिस्से के रूप में जातिगत गणना कराने में विफल रही थी। हालांकि, अगली जनगणना कब होगी, इस पर अभी भी कोई स्पष्टता नहीं है। महामारी के कारण 2021 की जनगणना में देरी हुई। पिछले साल, केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने कहा था कि जनगणना बहुत जल्द कराई जाएगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि हम इसका पूरी तरह समर्थन करते हैं, लेकिन यह काम एक निश्चित समयसीमा में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार अब तक जातिगत गणना का विरोध कर रही थी, लेकिन अचानक इसे करने का फैसला किया गया, हम इस कदम का स्वागत करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने बुधवार को अक्टूबर से शुरू होने वाले आगामी 2025-26 सत्र के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 4.41 प्रतिशत बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल करने का फैसला किया है। चालू 2024-25 सत्र के लिए गन्ने का एफआरपी 340 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। केंद्र सरकार एफआरपी तय करती है, जो अनिवार्य न्यूनतम मूल्य है। चीनी मिलें गन्ना किसानों को उनकी उपज के लिए यह मूल्य देने को कानूनी रूप से बाध्य हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मेघालय के मावलिंगखुंग से असम के पंचग्राम तक 22,864 करोड़ रुपये की कुल लागत से 166.80 किलोमीटर लंबे राजमार्ग के निर्माण की बुधवार को मंजूरी दे दी। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, इस राजमार्ग परियोजना का 144.80 किलोमीटर लंबा हिस्सा मेघालय और 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा असम में स्थित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में यह फैसला किया गया।