Budget 2024: बजट के आंकड़े वास्तविक हैं और विनिवेश, कल्याणकारी योजनाओं और पूंजीगत व्यय को लेकर सरकार के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। यह बात बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए वित्त और व्यय सचिव टीवी सोमनाथन ने रुचिका चित्रवंशी और असित रंजन मिश्र के साथ बातचीत में कही। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश-
विकास की गति को पाने, भारत को 2047 तक विकसित बनाने जैसे दूरगामी लक्ष्यों पर काम करने और विवेकपूर्ण राजकोषीय रास्ता बनाए रखने जैसे तीन प्रमुख विचार रहे, जिन्होंने बजट को दिशा देने में प्रमुख भूमिका निभाई।
गैर-कर राजस्व उम्मीद से बेहतर रहा है। खर्च पर भी नियंत्रण रखा गया है। राजस्व व्यय बहुत अधिक नहीं बढ़ा है। अवशोषण क्षमता के कारण पूंजी व्यय में कुछ बचत हुई है। पूंजीगत व्यय पूर्व के 100 फीसदी अनुमान से घटकर 95 प्रतिशत पर आ जाएगा। राजस्व के मोर्चे पर भी अच्छी खबर है। लिहाजा राजकोषीय घाटा बजट अनुमान से थोड़ा कम रखा गया है।
इसे कटौती नहीं कहेंगे। यह पूरी धनराशि खर्च नहीं कर पाने की वजह है। संशोधित अनुमान में कटौती इस आधार पर नहीं है कि वे मांग तो रहे थे, लेकिन हमने उन्हें पर्याप्त धन देने से मना कर दिया। ये सरकारी वित्त के नियमों के तहत मामले होते हैं। यदि सरकार निर्धारित खर्च करने में नाकाम रहती है तो उसे संसद को सूचित करना पड़ता है।
यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो यह ऑडिट का मुद्दा बन जाएगा। यदि पूरी धनराशि खर्च नहीं कर पा रहे हैं, तो हमें इस बारे में पहले ही बता देना होगा। इनमें से कुछ मामलों में पूरी राशि खर्च नहीं होने की वजह शायद यह रही हो कि राज्य सरकारों से उनके हिस्से की राशि उपलब्ध न हुई हो या योजना को लागू करने में कुछ देर हो रही हो।
हां, पूरी तरह संभव है। मैंने इसे जांचा तो नहीं है, लेकिन यदि ऐसा हो रहा है, तो यह हो रहा है। ये लक्ष्य वास्तविकता पर आधारित हैं और इन्हें हासिल किया जा सकता है।
मेरा मानना है कि हमारा काम गरीबों व कमजोर तबकों के लिए काम करना है। हम ऐसे खर्च भी करते हैं, जिनसे विकास को गति मिले। लेकिन गरीबों के अलावा अन्य उपभोक्ता मांग को बनाए रखना हमारा काम नहीं।
महामारी के दौरान सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह मांग को बनाए रखे, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां लगभग बंद हो गई थीं। अब हालात सामान्य हैं और ऐसे समय खपत की निगरानी करना सरकार की प्राथमिकता नहीं है।
वास्तव में हमारा ध्यान निवेश और बचत पर होना चाहिए। यदि आप धन को हस्तांतरित करते हैं तो क्या यह इस्तेमाल हो जाता है या बचाया जाता है, यह नागरिकों के ऊपर छोड़ देना चाहिए। मैं नहीं सोचना कि इस मामले में सरकार कुछ करे।
निश्चित रूप से राजकोषीय संसाधन के स्रोत के रूप में विनिवेश को नहीं देखा जा रहा है। हम अब विनिवेश को कम समय में संसाधन जुटाने के तरीके के रूप में नहीं, बल्कि सार्वजनिक संपत्तियों का अधिक से अधिक महत्त्व बढ़ाने के अवसर के तौर पर देख रहे हैं। इसलिए लघु अवधि में धन जुटाने और दूरगामी महत्व बढ़ाने के बीच कभी-कभी विवाद होता है। हमने ऐसा नहीं करने का निश्चिय किया है।
खाद्य सब्सिडी में थोड़ी कमी की गई है। उर्वरक सब्सिडी में मामूली कटौती हुई है। ये दो प्रमुख तत्व हैं।
यह इस वर्ष भी मुफ्त ही थी। इसलिए ऐसा नहीं कह सकते कि यह क्रमिक बढ़ोतरी है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इसमें कमी देखने को मिलती। हमें वह कमी दिख रही है। यह मौजूदा दर पर स्थिर है।
ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पिछले वर्ष के कुछ बकाया इस साल चुकाए गए हैं। यह इस वर्ष बढ़ोतरी दर्शाता है, अन्यथा यह स्थिर है।
हां, संभवत: ऐसा किया जाएगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसा होने जा रहा है।