भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौते के लिए चल रही बातचीत के बीच ब्रिटेन की एक संसदीय समिति ने चेतावनी दी है कि अपने व्यापार के लिए बाजार सुरक्षित करने के लिए ब्रिटेन गैर शुल्क बाधाओं और मानकों के मामले में दबाव में आ सकता है।
ऐसा इसलिए है कि भारत में ब्रिटेन की तुलना में शुल्क ज्यादा है। भारत से ब्रिटेन को होने वाला करीब 60 प्रतिशत निर्यात पहले ही शुल्क मुक्त है। वहीं ब्रिटेन से भारत को होने वाला सिर्फ 3 प्रतिशत निर्यात ही शुल्क मुक्त है।
हाउस आफ कॉमन्स की अंतरराष्ट्रीय व्यापार समिति ने शुक्रवार को ‘यूके ट्रेड नेगोशिएसंसः एग्रीमेंट विद इंडिया’ नाम से रिपोर्ट प्रकाशित की है। संबंधित हिस्सेदारों के साथ परामर्श के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। यह समिति बुधवार को भंग हो जाएगी, वहीं रिपोर्ट पर सरकार की प्रतिक्रिया इसकी उत्तराधिकारी समिति ‘बिजनेस ऐंड ट्रेड कमेटी’ को भेजी जाएगी।
समिति ने पिछले साल भी चेतावनी दी थी कि भारत में राज्य व केंद्र के स्तर की नियामकीय स्थिति अलग अलग है। इसकी वजह से मानकों और उन्हें लागू करने को लेकर तरीका अलग अलग है। ऐसे में ब्रिटेन सरकार को ब्रिटेन के मानकों को लेकर सख्त प्रतिबद्धता रखने की जरूरत है, जिससे कि ग्राहकों का हित कमजोर न पड़े।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब भारत और ब्रिटेन के बीच महत्त्वाकांक्षी मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने की कवायद की जा रही है।
दोनों देशों ने जनवरी 2022 में औपचारिक बातचीत शुरू की थी और दीवाली/अक्टूबर के अंत तक इसे अंतिम रूप देने का लक्ष्य रखा। हालांकि इस तिथि तक बातचीत पूरी नहीं हो सकी और दोनों पक्ष कुछ वस्तुओं व सेवाओं की बाजार तक व्यापक पहुंच देने को लेकर सहमत नहीं हो सके।
इस वार्ता में 26 नीतिगत अध्याय हैं, जिसमें 13 अध्याय पर राय बन गई है। नई दिल्ली में पिछले महीने आठवें दौर की बातचीत पूरी हुई। वाणिज्य विभाग के अधिकारियों ने इस माह की शुरुआत में कहा था कि इस सप्ताह भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत होने वाली है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ब्रिटेन की मुख्य दिलचस्पी आयातित वाहनों पर सीमा शुल्क घटाने को लेकर है, जिस पर भारत औसतन 59 प्रतिशत से 125 प्रतिशत तक कर लगाता है। ब्रिटेन के वाहन उद्योग संगठन ने शुल्क व नियामकीय बाधाएं घटाने और उत्पत्ति के मानक को लेकर कामकाज करने योग्य नियम बनाने को लेकर दिलचस्पी दिखाई है।
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इसमें कहा गया है, ‘इसके विपरीत भारत द्वारा सीमित शुल्क कटौती, उत्पत्ति के नियम और गैर शुल्क बाधाओं को लेकर समर्पित कदम न होने के कारण भारत के प्रतिस्पर्धियों को लाभ हो सकता है और ब्रिटेन के वाहन उद्योग को इससे कोई लाभ नहीं होगा।’
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सिविल सोसाइटी समूहों ने एफटीए के कारण उत्सर्जन बढ़ने व कॉर्बन लीकेज की संभावना को लेकर ध्यान आकर्षित किया है। उनके मुताबिक भारत का टेक्सटाइल और अपैरल उद्योग उदारीकृत व्यापार का मुख्य लाभार्थी होगा, जिसकी वायु प्रदूषण, जल की गुणवत्ता खराब करने और पानी संकट में मुख्य भूमिका है।