प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की आगामी 56वीं बैठक में ब्रोकरों, एजेंटों और डिजिटल प्लेटफॉर्म सहित प्रमुख मध्यस्थों को निर्यातकों के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने और उनकी सेवाओं को शून्य-रेटेड दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने की उम्मीद है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी।
इस कदम का मकसद ऐसी इकाइयों पर 18 प्रतिशत जीएसटी का बोझ कम करना है। विधि समिति की मंजूरी के बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए ले जाया जा सकता है। इससे ऐसी फर्मों के लिए महत्त्वपूर्ण वित्तीय राहत का मार्ग प्रशस्त होगा। अधिकारी ने कहा, ‘कानून समिति की मंजूरी जल्द मिलने की संभावना है। जीएसटी परिषद की अगली बैठक में इसके बारे में अंतिम निर्णय भारत के मध्यस्थ संचालित निर्यात क्षेत्रों के लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।’
इस समय केंद्रीय जीएसटी अधिनियम के तहत जीएसटी के कर ढांचे में मध्यस्थ सेवाएं 18 प्रतिशत कर के दायरे में आती हैं। संशोधन में इंटीग्रेटेड जीएसटी (आईजीएसटी) ऐक्ट की धारा 13 (8) (बी) को हटाने का प्रस्ताव है। इसके तहत मध्यस्थ सेवाओं की आपूर्ति को घरेलू कराधान व्यवस्था में शामिल किया गया है। एक बार जब इसका संशोधन हो जाएगा, ये सेवाएं निर्यात की श्रेणी में आ सकेंगी और ये जीरो रेटेड और इनपुट टैक्स पर रिफंड का दावा करने की पात्र हो जाएंगी।
अधिकारी ने कहा, ‘इस सुधार से भारतीय मध्यस्थों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए एकसमान अवसर मिल सकेगा, क्योंकि विदेशी क्लाइंट प्रायः लिए जा रहे जीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं करते हैं।’ इस मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस बदलाव से टेक्सटाइल और कमोटिडी ट्रेडिंग जैसे क्षेत्रों को राहत मिल सकती है, जिनके 3,357 करोड़ रुपये के कारण बताओ नोटिस के मामले लंबित हैं। कर विशेषज्ञों का कहना है कि इस संशोधन से इस क्षेत्र की वैश्विक व्यवस्था से जुड़े नियमों से भारत के कानून का तालमेल हो सकेगा। टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी के पार्टनर विवेक जालान ने कहा, ‘मध्यस्थ सेवाओं को स्वाभाविक रूप से आईजीएसटी के तहत निर्यात के रूप में योग्य होना चाहिए। मौजूदा प्रावधान में कर का अनुचित बोझ पड़ता है और इस संशोधन से इसका समाधान हो सकेगा।’
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इसके अलावा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी जीएसटी परिषद की बैठक में राज्यों से आग्रह कर सकती हैं कि वे अपनी जीएसटी पंजीकरण की प्रक्रिया को केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) द्वारा केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) अधिकारियों के लिए हाल ही में जारी किए गए सुव्यवस्थित मानदंडों के अनुरूप बनाएं।
ढांचे के हिसाब से जीएसटी एकीकृत कर है, लेकिन केंद्र व राज्य इसे संयुक्त रूप से प्रशासित करते हैं।
अप्रैल में सीबीआईसी ने सीजीएसटी अधिकारियों को विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे, जिससे कि पंजीकरण आवेदनों के प्रॉसेसिंग में विवेकाधीन गतिविधियों पर लगाम लग सके। दिशानिर्देशों में साफ किया गया है कि केवल फॉर्म जीएसटी आरईजी-01 में सूचीबद्ध दस्तावेज ही मांगे जाने चाहिए और अधिकारियों को अप्रासंगिक या अनुमानित प्रश्नों से बचने का निर्देश दिया गया है। इसमें सख्त समय-सीमा भी निर्धारित की गई है और स्टैंडर्ड आवेदनों के लिए 7 कार्य दिवस और भौतिक सत्यापन की आवश्यकता वाले उच्च जोखिम वाले मामलों के लिए 30 दिन के भीतर काम करने का वक्त दिया गया है।
अधिकारी ने कहा, ‘वित्त मंत्री राज्यों से आग्रह करेंगे कि वे समान पंजीकरण दिशानिर्देशों का पालन करें। जीएसटी एक साझा जिम्मेदारी है और नियमों को लागू करने में एकरूपता होनी चाहिए।’
अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय स्तर पर कार्यान्वयन के शुरुआती संकेत उत्साहजनक हैं। अधिकारी ने कहा, ‘हम पंजीकरण संख्या में सकारात्मक प्रगति देख रहे हैं, हालांकि हमारे पास अभी तक समेकित डेटा नहीं है क्योंकि इसे शुरू हुए अभी केवल एक महीना हुआ है।’