संशोधित त्वरित विद्युत विकास और सुधार कार्यक्रम योजना (एपीडीआरपी)के तहत शहरी क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता में हुए 15 प्रतिशत के कुल तकनीक और व्यावसायिक(एटी एंड सी)घाटे को कम करने के लक्ष्य को योजना आयोग ने अवास्तविक करार दिया है। उनका मानना है कि यह घाटा 12,000 करोड रुपये का है और इसकी भरपाई करने में 15 साल लगेंगे। एपीडीआरपी 2003 से क्रियान्वित है और इसके तहत इस घाटे को 5 सालों में भरने का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना के तहत अभी तक कोई वांछित सफलता हासिल नहीं हो सकी है। बहुत सारे मूल्यांकनों के आधार पर भी यह स्पष्ट हुआ है कि इस योजना के तहत अवास्तविक परिणाम आए और वे सारे परिणाम बेतरतीब ढंग से बनाए गए थे।
जबकि इस योजना के नए अवतार, एपीडीआरपी 2, के तहत भी फिर से इस 15 प्रतिशत के घाटे को पाटने के लिए वही पुरानी कवायद जारी है। इस प्रस्ताव के मुताबिक यह योजना केंद्र के अधीन होगी, जबकि इससे पहले की योजना को केवल केंद्र से सहायता मिलती थी। इस संदर्भ में ऊर्जा मंत्रालय ने हाल में एक व्यय वित्त आयोग (ईएफसी) नोट प्रसारित किया है।
योजना आयोग ने कहा है कि इस घाटे की भरपाई करने के लिए एक लोड मिक्स और जनसांख्यिकीय के बीच एक बेहतर तालमेल बनाकर ध्यान केंद्रित करना होगा। आयोग ने बिजली मंत्रालय के इस मांग का भी विरोध किया है, जिसमें लोन सहायता का आग्रह किया गया था। इसके पीछे मंत्रालय का तर्क है कि अगर यह लोन दे दिया जाए तो एपीडीआरपी 2 की मूल विशेषताएं खत्म हो जाएगी, जिसके तहत वितरण में इंसेंटिव निवेश का लक्ष्य था। ऊर्जा मंत्रालय का मानना है कि इस संदर्भ में 50 प्रतिशत लोन केंद्र सरकार को देना चाहिए, लेकिन आयोग मानती है कि अगर ये लोन संस्थागत तौर पर नहीं दिए गए, तो इससे अपेक्षित सफलता नहीं मिलेगी। आयोग पैनल का यह भी मानना है कि 11 किलोवाट से कम के वितरण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, क्योंकि इसी तंत्र में घाटा होता है।