पहली बार सरकार ने औपचारिक तौर पर इसकी घोषणा की है कि भारत ने उत्पादन-आधारित रियायत योजना (पीएलआई) के तहत मोबाइल फोन सेगमेंट में 20 प्रतिशत की औसत घरेलू मूल्य वृद्धि (डीवीए) दर्ज की है। सरकार का मकसद वित्त वर्ष 2026 तक यह आंकड़ा 35-40 प्रतिशत पर पहुंचाना है।
भारत में सिर्फ 22 महीने पहले परिचालन शुरू करने वाली ऐपल का भारत के 11 अरब डॉलर के स्मार्टफोन निर्यात में 50 प्रतिशत योगदान है। पीएलआई के तहत, उसके विक्रेताओं को 29-30 प्रतिशत डीवीए तक पहुंचने की जरूरत होगी, जो मौजूदा 15 प्रतिशत से करीब दोगुना है, हालांकि यह मोबाइल के अलग अलग मॉडल पर निर्भर है और इसे हासिल करना आसान नहीं हो सकता है।
ऐपल के विक्रेताओं ने स्थानीय तौर पर चार्जर, बैटरियों, पीसीबीए, एनक्लोजर, और कॉइल की पेशकश की है।
बोफा रिसर्च द्वारा जताए गए अनुमानों के अनुसार, करीब 70 प्रतिशत आईफोन लागत मेमोरी, प्रोसेसर, डिस्प्ले और केमरा मॉड्यूल से जुड़ी होती है और इन्हें आयात करना पड़ता है, इसलिए स्थानीयकरण में पीएलआई समय-सीमा से अधिक समय लग सकता है।
ऐपल के एक अधिकारी ने इस बारे में पूछे गए सवालों पर प्रतिक्रिया नहीं दी है।
बोफा रिसर्च के अनुसार, स्थानीयकरण में समय इसलिए लगता है, क्योंकि इसमें ज्यादा पूंजीगत निवेश की जरूरत होती है और निर्माण करना चुनौतीपूर्ण होता है।
वैकल्पिक तौर पर, ऐपल के विक्रेता- फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन – अपनी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की मदद ले सकते हैं जिनमें से ज्यादातर चीन में हैं, और भारत में निर्माण पर जोर देंगे और इसके परिणामस्वरूप डीवीए में इजाफा हो सकता है।
लेकिन भारत द्वारा अपनी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) नीति में सख्ती के बाद इसकी आशंका नहीं है। एफडीआई नीति में बदलाव से ऐपल के विक्रेताओं को सीमा पर तनाव पैदा होने के बाद दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक टकराव की वजह से अनुमति पाना मुश्किल हो गया।
विश्लेषकों का कहना है कि इसकी वजह से, ऐपल घरेलू कंपनियों को आपूर्ति श्रृंखला में शामिल करने पर ध्यान दे रही है। विश्लेषक इसके लिए टाटा समूह का उदाहरण दे रहे हैं, जो ऐपल के साथ बातचीत कर रहा है। लेकिन इसमें भी समय लग रहा है, क्योंकि कई भारतीय कंपनियों (वे भी, जिनके पास पूंजी उपलब्ध है) को सरकार से समर्थन या कलपुर्जों के लिए अलग पीएलआई योजना से मदद की जरूरत होगी। प्रौद्योगिकी के बगैर, डीवीए की रफ्तार धीमी रहेगी।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि ऐपल घरेलू तौर पर आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने के लिए कई भारतीय कंपनियों से बातचीत कर रही है। टाटा समूह ऐसी कंपनियों में शामिल है। वह आईफोन के लिए मैकेनिकल पुर्जे पहले से ही मुहैया करा रहा है और चीन को निर्यात भी कर रहा है। लेकिन इसमें 3-4 साल का वक्त लगा और बड़ा निवेश करना पड़ा।
सरकार ने हाल में, खासकर मोबाइल डिवाइस निर्माताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भारत आने वाली चीनी कंपनियों को दूर बनाए रखने से संबंधित अपने नियमों में ढील दी है। लेकिन मोबाइल कंपनियों का कहना है कि इस बदलाव से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।