सरकार मेक इन इंडिया कार्यक्रम पर नजर रखते हुए नए और नवोन्मेषी उत्पादों के उत्पादन बढ़ाने के लिए सार्वजनिक खरीद नियम को उदार बनाने पर विचार कर रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को कहा, ‘सरकारी खरीद के नियम में सेक्टर के मुताबिक कुछ संशोधनों की जरूरत पड़ सकती है। कुछ ऐसे सेक्टर हैं, जहां विकास के लिए माहौल बनाने में वक्त लगेगा। शुरुआत में मूल्यवर्धन कम रहेगा, जो धीरे धीरे ऊपर जाएगा। हम जांच कर रहे हैं कि क्या इन क्षेत्रों के लिए कोई खाका बनाया जा सकता है, ताकि वे श्रेणी 1 या श्रेणी 2 आपूर्तिकर्ता बन सकें।’
नए और नवोन्मेषी उत्पादों की सूची में किन उत्पादों को शामिल किया जाएगा, इसके बारे में अंतरमंत्रालयी बैठक के बाद फैसला होगा।
गोयल ने कहा, ‘उद्योग की सिफारिशों के आधार पर उन उत्पादों की खरीद के नियम पर विचार किया जा रहा है, जिनका विनिर्माण भारत में पहली बार हो रहा है। सामान्यतया खरीद में पहले के अनुभव की जरूरत होती है। हम प्रयोगशाला में परीक्षण या अन्य तरीकों से उन्हें आपूर्ति के योग्य बनाने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं।’
उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) की 140 लाभार्थी कंपनियों के सीईओ के साथ बातचीत में मंत्री के सामने ये सुझाव आए। इन कंपनियों में सैमसंग, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जेएसडब्ल्यू स्टील, डिक्सन, सन फार्मास्यूटिकल्स, डाइफिन के साथ अन्य शामिल हैं।
इस समय वस्तुओं, सेवाओं या काम के उत्पादन में कम से कम 50 प्रतिशत स्थानीय सामग्री रखने वाली फर्मों के उत्पादों को प्रथम श्रेणी का स्थानीय आपूर्तिकर्ता माना जाता है। इन्हें सार्वजनिक खरीद में सर्वोच्च तरजीह मिली हुई है।
द्वितीय श्रेणी के स्थानीय आपूर्तिकर्ता उन कंपनियों के उत्पादों, सेवाओं या काम को माना जाता है, जिनमें 20 से 50 प्रतिशत तक स्थानीय सामग्री होती है। गैर स्थानीय आपूर्तिकर्ता वह होता है, जिसके वस्तुओं या सेवाओं या काम में 20 प्रतिशत स्थानीय सामग्री होती है। सरकारी खरीद में इन्हें सामान्यतया सबसे कम तरजीह मिलती है, जब कोई प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी का आपूर्तिकर्ता नहीं मिलता है।
पीएलआई योजना में अगले साल तक 14 सेक्टरों में निवेश बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है, जो अभी 1.46 लाख करोड़ रुपये है। गोयल ने कहा कि पहले अनुमान लगाया गया था कि पीएलआई योजना के तहत करीब 8.5 लाख नौकरियां पैदा होंगी।