पिछली दो तिमाही में कंपनियों की आय वृद्धि में नरमी का असर अब कंपनियों के पूंजीगत खर्च पर भी दिखने लगा है। देश की शीर्ष सूचीबद्ध कंपनियों की क्षमता विस्तार पर नए निवेश की रफ्तार आय वृद्धि में नरमी को देखते हुए धीमी हो रही है।
बैंकिंग, वित्त और बीमा (BFSI) तथा सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस कंपनियों को छोड़कर बाकी सूचीबद्ध कंपनियों की कुल स्थिर संपत्तियां चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 10.1 फीसदी बढ़ी है। यह पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की 21.1 फीसदी वृद्धि की तुलना में कम है।
वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही में भी कंपनियों के स्थिर पूंजी निर्माण में 11.6 फीसदी का इजाफा हुआ था। भारतीय कंपनी जगत की स्थिर पूंजी में यह पिछले 18 महीनों में सबसे धीमी वृद्धि है। इसके उलट इन कंपनियों का कुल मुनाफा चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सालाना आधार पर 12 फीसदी बढ़ा है जो पिछले 18 महीने में सबसे अधिक है।
नमूने में शामिल सभी गैर-बीएफएसआई कंपनियों की कुल स्थिर संपत्तियां चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 10.4 फीसदी बढ़ी, जो वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही की 19.1 फीसदी वृद्धि से कम है।
कंपनियों के पूंजीगत खर्च में कमी उनकी आय वृद्धि में नरमी को दर्शाती है। बीएफएसआई और सरकारी तेल-गैस कंपनियों को छोड़ दें तो नमूने में शामिल 725 कंपनियों की कुल शुद्ध बिक्री वित्त वर्ष 2024 की पहली छमाही में सालाना आधार पर महज 4.2 फीसदी बढ़ी है जो तीन साल में सबसे कम है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसमें 12.2 फीसदी का इजाफा हुआ था। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल-गैस कंपनियों की शुद्ध बिक्री में इससे ज्यादा कमी आई है।
यह विश्लेषण 725 कंपनियों के नमूने पर आधारित है। जिसमें बीएसई 500, बीएसई मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांक वाली कंपनियां शामिल हैं। हालांकि इसमें बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, बीमा, शेयर ब्रोकिंग और सार्वजनिक क्षेत्र की तेल-गैस कंपनियां शामिल नहीं हैं। हमने इस विश्लेषण में सरकारी तेल-गैस कंपनियों को इसलिए शामिल नहीं किया क्योंकि उनकी आय और मुनाफा ईंधन कीमतों में सरकार की नीतियों से व्यापक तौर पर प्रभावित होते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्व वृद्धि में गिरावट ने कारोबारी जगत के टर्नओवर टु फिक्स्ड ऐसेट रेश्यो (कुल कारोबार तथा पूंजीगत संपत्ति मसलन भवन, उपकरण आदि का अनुपात) को भी प्रभावित किया है।
इस रेश्यो से आशय है मौजूदा पूंजीगत संपत्ति से होने वाली बिक्री। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, ‘अर्थव्यवस्था में क्षमता के इस्तेमाल पर नजर डालने का एक तरीका कुल कारोबार तथा पूंजीगत संपत्ति के अनुपात पर नजर डालने का भी है। वित्त वर्ष 23 की पहली छमाही की तुलना में वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में इस अनुपात में कमी आई। इसकी मुख्य वजह है बिक्री के आंकड़ों में गिरावट जो वित्त वर्ष के आरंभ से ही नजर आ रही है।’
बिज़नेस स्टैंडर्ड के सर्वेक्षण में 725 कंपनियों के लिए यह अनुपात वित्त वर्ष 23 की दूसरी छमाही के 0.446 से घटकर पहली छमाही में 0.437 रह गया। वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में यह 0.442 रहा। इससे संकेत मिलता है कि वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में अर्थव्यवस्था में क्षमता का इस्तेमाल पिछले वित्त वर्ष की तुलना में कम हुआ।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो शुद्ध बिक्री में वृद्धि तथा पूंजीगत संपत्ति में वृद्धि के बीच करीबी संबंध है। इसी प्रकार आंकड़े बताते हैं कि कुल कारोबार तथा परिसंपत्ति अनुपात तथा पूंजीगत संपत्ति वृद्धि के बीच भी सकारात्मक रिश्ता है। विश्लेषक उपभोक्ता मांग में कमी के लिए मंदी को वजह बताते हैं।
सिस्टमैटिक्स समूह में रणनीति शोध एवं अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख तथा इक्विटीज के उप प्रमुख धनंजय सिन्हा कहते हैं, ‘वाहनों की बिक्री के अलावा वित्त वर्ष 24 में उपभोक्ता मांग में भारी कमी आई है। यह कमी आय में कम वृद्धि तथा जीवन की बढ़ती लागत की वजह से आई है। यह बात कंपनियों को क्षमता विस्तार में निवेश के लिए प्रेरित नहीं करती।’
उनके मुताबिक कंपनियां अब निवेश बढ़ाने के बजाय लागत कटौती करके अपना मार्जिन तथा मुनाफा बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं।
जो छमाही बैलेंस शीट सामने आई हैं उनका क्षेत्रवार विश्लेषण बताता है कि पूंजी के इस्तेमाल वाले सभी प्रमुख क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय घटा है। केवल तेल एवं गैस तथा बिजली क्षेत्र इसका अपवाद हैं।
उदाहरण के लिए वाहन क्षेत्र में पूंजीगत वस्तुओं यानी पूंजीगत संपत्ति में वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में साल दर साल आधार पर 6.8 फीसदी की वृद्धि हई जो दूसरी छमाही के 9.2 फीसदी से कम थी।