रिलांयस जियो ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के संभावित आवंटन के मामले में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को दूसरी कानूनी राय दी है। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एल नागेश्वर राव ने इसे लिखा है। इसमें नीलामी को लेकर कहा गया है कि स्पेक्ट्रम आवंटित करने का कोई अन्य तरीका संवैधानिक रूप से अनुचित हो सकता है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने चिट्ठी की समीक्षा की है। राव ने पत्र में लिखा है, ‘सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए वाणिज्यिक रकम और सामाजिक एवं कल्याणकारी उद्देश्यों के मद्देनजर नीलामी के इतर कोई भी कानून या नियम चिंता की बात है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत संवैधानिक रूप से भी इसे अनुचित पाया होगा।
एक बार फिर शीर्ष अदालत के 2जी पर दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए राव ने बताया कि अदालत पहले ही स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए दूरसंचार विभाग द्वारा अपनाई गई पहले आओ, पहले पाओ नीति के खिलाफ तर्क दे चुकी है। उन्होंने कहा, अदालत ने बताया था कि नीति में एक बुनियादी खामी है और इस बात पर जोर दिया कि इसके स्वाभाविक रूप से खतरनाक निहितार्थ हैं।
राव ने गोवा फाउंडेशन बनाम सेसा स्टरलाइट लिमिटेड मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई एक पूर्व टिप्पणी का भी हवाला दिया। इसमें संकेत दिया गया था कि स्पेक्ट्रम वितरित करने की कोई भी विधि जो सरकार के लिए राजस्व की अधिकतमता को ध्यान में नहीं रखती है, उसे न्यायपालिका द्वारा समीक्षा का सामना करना पड़ सकता है।
पिछले हफ्ते, जियो ने नीलामी के पक्ष में तर्क देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएसपी राधाकृष्णन द्वारा लिखा एक और पत्र भेजा था। इसने 2जी फैसले की ओर इशारा किया था और इस बात पर जोर दिया था कि शीर्ष अदालत द्वारा शासित स्पेक्ट्रम को केवल नीलामी के जरिये ही अलग किया जा सकता है, किसी अन्य तरीके से नहीं। पत्र में कहा गया है, ‘अदालत के तर्क में ऐसा कुछ भी नहीं दर्शाया गया है कि यह निष्कर्ष सैटेलाइट आधारित संचार सेवाओं के उद्देश्य से स्पेक्ट्रम के उन्मूलन पर लागू नहीं होगा।’
जियो द्वारा प्रस्तुत कानूनी राय उद्योग निकाय ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम (बीआईएफ) द्वारा सैटेलाइट स्पेक्ट्रम नीलामी के खिलाफ ट्राई को भेजी गई इसी तरह की कानूनी राय के बाद आई है। अन्य कंपनियां फिलहाल इस मामले पर ट्राई की अंतिम सिफारिशों का इंतजार कर रही हैं। इस मामले पर परामर्श जून में समाप्त हुआ।