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परिवारों पर सालाना 11,000 करोड़ रुपये तक का बोझ डालते हैं Swiggy, Zomato जैसे फूड एग्रीगेटर, बेहद बारीकी से लगाते हैं रकम

छिपी हुई लागत का खुलासा करने के लिए इस रिपोर्ट में 50 से अधिक रेस्तरां, शाकाहारी एवं मांसाहारी व्यंजनों और तीन फूड एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर कीमतों का विश्लेषण किया गया है।

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शिवानी शिंदे   
Last Updated- September 18, 2024 | 11:25 PM IST

भले ही क्विक डिलिवरी सेवाओं तक लोगों की पहुंच आसान होने से समय की बचत हो रही हो, लेकिन उसकी लागत भारतीय परिवारों का घरेलू खर्च बढ़ा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रमुख फूड एग्रीगेटर द्वारा वसूले गए प्रीमियम के कारण परिवारों को कुल मिलाकर 9,000 से 11,000 करोड़ रुपये की वार्षिक लागत का बोझ उठाना पड़ता है।

एकीकृत मार्केटिंग एजेंसी मैवरिक्स इंडिया की रिपोर्ट से पता चलता है कि एग्रीगेटरों के मूल्य निर्धारण मॉडल में बेहद बारीकी एक मामूली रकम लगाई जाती है जो तत्काल उपभोक्ताओं की जेब पर कोई खास बोझ नहीं डालती है।

‘फूड डिलिवरी अनरैप्ड: अनकवरिंग हिडेन कॉस्ट्स ऑन इंडियाज एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स’ शीर्षक के तहत जारी अपनी ताजा रिपोर्ट में एजेंसी ने फूड एग्रीगेटर सेवाओं की अधिक कीमतों और उसमें छिपी हुई लागत को उजागर किया गया है। इसमें डिलिवरी शुल्क, पैकेजिंग शुल्क और जोमैटो गोल्ड जैसी प्रीमियम सदस्यता की उपयोगिता शामिल है। यह रिपोर्ट स्विगी, जोमैटो और मैजिक पिन जैसे तीन प्रमुख प्लेटफॉर्मों के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।

इसमें रेस्तरां के स्वामित्व वाले डिलिवरी प्लेटफॉर्म पर बेहतर पारदर्शी मूल्य निर्धारण के साथ क्विक डिलिवरी सेवाओं की तुलना करते हुए प्रमुख असमानताओं को उजागर किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि रेस्तरां के अपने चैनल के जरिये दिए गए डिलिवरी ऑर्डर के मुकाबले औसत एग्रीगेटर प्रीमियम 46 रुपये प्रति व्यंजन (छिपी लागत) है। इस प्रकार, प्रमुख महानगरों अथवा बड़े शहरों में रहने वाले औसत भारतीय परिवार पर सालाना करीब 12,000 रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा।

फूड एग्रीगेटर द्वारा वसूले जाने वाले 150 से 200 फीसदी अधिक डिलिवरी शुल्क जैसे अंतर काफी मायने रखते हैं क्योंकि कुल मिलाकर उसका वित्तीय प्रभाव काफी बड़ा हो सकता है। हालांकि 46 फीसदी रेस्तरां अपने स्वामित्व वाले चैनलों पर कोई डिलिवरी शुल्क नहीं लेते हैं, मगर उनमें से अधिकतर ने एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर डिलिवरी शुल्क लिए जाने का संकेत दिया।

इसके अलावा पैकेजिंग शुल्क एक अन्य मुद्दा है। फूड एग्रीगेटर पैकेजिंग के लिए रेस्तरां के मुकाबले 2 रुपये अधिक लेते हैं, भले ही पैकेजिंग एक जैसी क्यों न हो। उपभोक्ताओं के बिल में जोड़े जाने पर यह बेहद मामूली दिखने वाला शुल्क कुल मिलाकर सालाना 400 करोड़ रुपये की आय सृजित करता है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि प्रीमियम सबस्क्रिप्शन से कोई उपभोक्ताओं को कोई बचत नहीं होती है क्योंकि बिना सदस्यता वाले ग्राहकों को भी 199 रुपये से अधिक के ऑर्डर पर अक्सर समान फायदे मिलते हैं। डाइन-इन रेस्तरां के लिए डिलिवरी शुल्क एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर डिलिवरी-फस्ट रेस्तरां के मुकाबले औसतन 6.5 रुपये अधिक होता है।

द मैवरिक्स इंडिया के संस्थापक एवं सीईओ चेतन महाजन ने कहा, ‘सुविधा को देखते हुए बड़ी तादाद में उपभोक्ता फूड एग्रीगेटर की ओर आकर्षित हो रहे हैं, मगर डिलिवरी, पैकेजिंग एवं सदस्यता की छिपी हुई लागत अक्सर महत्त्वपूर्ण वित्तीय नुकसान में बदल सकती है। व्यवहार अर्थशास्त्र के अनुसार उपभोक्ता किसी बड़ी रकम के मुकाबले कई छोटे शुल्कों को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। इससे फूड एग्रीगेटर की लागत को आसानी से समझा जा सकता है। हमारी रिपोर्ट न केवल ऐसी लागत को अलग करती है बल्कि अधिक पारदर्शिता पर भी जोर देती है। उपभोक्ताओं को अपने खर्च के बारे में पूरी जानकारी के साथ निर्णय लेने में समर्थ होना चाहिए।’

छिपी हुई लागत का खुलासा करने के लिए इस रिपोर्ट में 50 से अधिक रेस्तरां, शाकाहारी एवं मांसाहारी व्यंजनों और तीन फूड एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर कीमतों का विश्लेषण किया गया है।

First Published : September 18, 2024 | 10:49 PM IST