उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी (PSU) कोल इंडिया लिमिटेड भी प्रतिस्पर्धा अधिनियम के दायरे में आएगी।
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ, बीवी नागरत्ना और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह के पीठ ने कहा, ‘प्रतिस्पर्धा कानून की धारा 54 में केंद्र सरकार को शक्ति दी गई है कि वह इस अधिनियम या किसी भी प्रावधान को लागू करने के मामले में किसी भी अवधि के लिए छूट दे सकती है, जिसे अधिसूचना में बताना होगा। छूट का आधार राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक हित हो सकता है। अगर अपीलकर्ता इसे अधिनियम के दायरे से बाहर रखने को लेकर उचित मामला साबित करता है, तो सरकार शक्तिहीन होगी। हमें अब इस पर ज्यादा नहीं कहना है। इस मसले की तार्किकता पर फैसला करने के लिए इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के पास वापस भेज दिया गया है।
न्यायालय ने कोल इंडिया का यह तर्क खारिज कर दिया कि उसका संचालन कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण)अधिनियम से होता है इसलिए उस पर प्रतिस्पर्धा कानून लागू नहीं होगा।
पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि अपीलकर्ता (कोल इंडिया) के तर्क में कोई दम नहीं है, जिसमें कहा गया है कि अधिनियम अपीलकर्ताओं पर इसलिए लागू नहीं होगा क्योंकि वह राष्ट्रीयकरण अधिनियम से संचालित हैं और राष्ट्रीयकरण अधिनियम से इसका तालमेल नहीं हो सकता है। यह अपीलकर्ताओं का अपने हर काम का बचाव करने जैसा है। स्थानांतरित मामले को वापस भेजा जाएगा, जिससे वे अपने मेरिट के आधार पर निपट सकें।’
खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर अंशुमान साकले ने कहा कि इस व्यवस्था ने प्रतिस्पर्धा कानून के तत प्रतिस्पर्धा की तटस्थता के सिद्धांत को लागू किया है, क्योंकि यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी उद्यमों पर एकसमान लागू होगा।
उन्होंने कहा, ‘प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत सरकार के उद्यमों और निजी उद्यमों में कोई भेदभाव नहीं किया गया है। हालांकि कोल इंडिया ने माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष राष्ट्रीयकरण अधिनियम 1973 के तहत एकाधिकार की बात कही। उच्चतम न्यायालय ने इस विचार से असहमति जताई और कहा कि स्पष्टता और प्रतिस्पर्धा व दायित्वों से बचा नहीं जा सकता है।’
शीर्ष न्यायालय ने कोल इंडिया की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें प्रतिस्पर्धा अपील न्यायाधिकरण (सीओएमपीएटी) की दिसंबर 2016 के नियम को चुनौती दी गई थी। इसके पहले न्यायाधिकरण ने कोल इंडिया की अपील खारिज कर दी थी, जिसमें 2014 के भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के फैसले को चुनौती दी गई थी।
सीसीआई ने बिजली उत्पादकों को गैर कोकिंग कोल की आपूर्ति के लिए ईंधन आपूर्ति समझौते में भेदभाव करने को लेकर कोल इंडिया पर 1,773.05 करोड़ रुपये जुर्माना लगाया था। न्यायाधिकरण ने बाद में जुर्माने को घटाकर 591.01 करोड़ रुपये कर दिया था।
प्रतिस्पर्धा नियामक ने महाराष्ट्र की कोयला से चलने वाली ताप बिजली उत्पादन कंपनी की सूचना के आधार पर कार्रवाई की थी। उसे 5 अन्य ताप बिजली उत्पादन कंपनियों से भी शिकायत मिली थी।
इन कंपनियों ने कहा था कि कोल इंडिया ने ईंधन बिक्री समझौते को लागू करने में देरी की और उसने उन्हें हस्ताक्षर को बाध्य किया।
कोल इंडिया की ओर से वकालत कर रहे वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने तर्क दिया कि उनकी कोयला खदानें कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 से संचालित होती हैं इसलिए उनका परिचालन प्रतिस्पर्धा अधिनियम के दायरे से बाहर है।