निवेशकों ने एक सम्मेलन में कहा कि भारतीय स्टार्टअप को ‘यूनिकॉर्न’ के तमगे से इतराना नहीं चाहिए क्योंकि यह निवेशकों के खाते में महज एक निजी प्रतीक होता है और असली सौदा तब होता है जब कंपनी को कोई रणनीतिक खरीदार मिलता है या जब वह पूंजी बाजार में उतरती है।
निवेशकों का यह भी मानना है कि मौजूदा परिदृश्य में 107 से अधिक यूनिकॉर्न का बड़ा हिस्सा ‘जॉम्बी’ स्टार्टअप की तरह हैं। जॉम्बी स्टार्टअप उसे कहा जाता है जिसका कोई सुदृढ़ कारोबारी मॉडल नहीं होता है और वे विकास की चुनौतियों से जूझते रहते हैं लेकिन कारोबार बंद नहीं करते हैं।
टाईकॉन मुंबई कॉन्फ्रेंस (TiEcon Mumbai conference) में ए91 पार्टनर्स (A91 Partners) के जनरल पार्टनर अभय पांडेय ने पैनल चर्चा के दौरान कहा, ‘यूनिकॉर्न निवेशकों के खाते में एक निजी तमगा होता है और इसकी वजह कोई अमीर नहीं होता है। यूनिकॉर्न बनने भर से आपको कुछ नहीं मिलता है, आप 1 अरब डॉलर मूल्यांकन हासिल कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी हैसियत उतनी अधिक है। असली परख तब होती है जब कंपनी सूचीबद्ध होती है या कर्मचारी या शेयरधारक अपनी हिस्सेदारी बेचते हैं। और ऐसा तब होता है जब कोई रणनीतिक साझेदार मिलता है या कंपनी पूंजी बाजार में दस्तक देती है।’
स्टार्टअप को पूंजी जुटाने में आ रही चुनौतियों के मद्देनजर पांडेय का कहना है कि 107 यूनिकॉर्न में से 50 फीसदी से भी कम फर्में हैं जो निवेशकों को कमाई करा सकती हैं।
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Asset 361 में पीई-प्रमुख समीर नाथ ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा कि भारत के 107 यूनिकॉर्न में से करीब 25 फीसदी जॉम्बी में तब्दील हो सकते हैं।
भारतीय स्टार्टअप की दुनिया में यूनिकॉर्न बनने की रफ्तार में 2021 और 2022 के शुरुआती दौर की तुलना में काफी कमी आई है। वर्ष 2021 में देश में 44 यूनिकॉर्न बने थे और 2022 में 23 नए यूनिकॉर्न का उदय हुआ था। इसकी तुलना में इस साल एक भी स्टार्टअप को यूनिकॉर्न का दर्जा नहीं मिल पाया है।
बाद में कारोबार शुरू करने वाले स्टार्टअप को पूंजी जुटाने में भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इन फर्मों को पूंजी जुटाने में समस्या इसलिए आ रही है क्योंकि निवेशकों को मूल्यांकन में कमी का डर सता रहा है।
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पांडेय ने कहा, ‘दुर्भाग्यवश कुछ जॉम्बी यूनिकॉर्न बनेंगे लेकिन कुछ स्टार्टअप का कारोबारी मॉडल अच्छा है और निवेशक बने रहेंगे, लेकिन पे इन फर्मों से कोई कमाई नहीं कर पाएंगे।’