Adani Row: Adani Group से जुड़ी कुछ कंपनियों ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास सार्वजनिक शेयरहोल्डिंग नियमों के उल्लंघन के आरोपों को निपटाने के लिए समझौता आवेदन दायर किया है। इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स (EIFF), जो मॉरीशस स्थित एक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक है और जिसे गौतम अदाणी के बड़े भाई विनोद अदाणी से जोड़ा जा रहा है, ने 28 लाख रुपये की समझौता राशि का प्रस्ताव दिया है।
इसके अलावा, अदाणी एंटरप्राइजेज के निदेशक विनय प्रकाश और अंबुजा सीमेंट्स के निदेशक अमीत देसाई ने भी 3-3 लाख रुपये की राशि का प्रस्ताव रखा है। अदाणी एंटरप्राइजेज ने भी अपने लिए समझौता आवेदन दायर किया है।
यह कदम सेबी द्वारा 27 सितंबर को जारी शो-कॉज नोटिस के बाद उठाया गया है। समझौता आवेदन दायर करने का मतलब यह नहीं है कि आरोप स्वीकार कर लिए गए हैं। इसे एक सामान्य प्रक्रिया माना जाता है।
सेबी ने अभी तक इन आवेदनों पर कोई फैसला नहीं लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम चार कंपनियों और व्यक्तियों ने समझौता आवेदन दायर किया है। यह भी संभव है कि अदाणी समूह से जुड़ी अन्य संस्थाएं भी ऐसा कर रही हों।
सेबी ने अदाणी ग्रुप से जुड़े 26 लोगों और कंपनियों को नोटिस भेजा है। इसमें गौतम अदाणी, उनके भाई विनोद, राजेश, वसंत, भतीजे प्रणव अदाणी और साले प्रणव वोरा शामिल हैं। इनसे पूछा गया है कि उन पर कार्रवाई क्यों न की जाए, जैसे कि शेयर बाजार में बैन करना। इन पर नियम तोड़ने के आरोप हैं।
सेबी का कहना है कि विनोद अडानी और उनके साथियों ने जटिल शेयर खरीदने-बेचने के तरीकों से 2,500 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए। उन्होंने अदाणी एंटरप्राइजेज, अदाणी पावर, अदाणी पोर्ट्स और अदाणी एनर्जी सॉल्यूशंस (पहले अदाणी ट्रांसमिशन) में सार्वजनिक शेयर रखने के नियमों को नजरअंदाज किया।
सेबी ने 2012 से 2020 के बीच हुए लेनदेन की जांच की। जांच में पता चला कि दो विदेशी निवेशक—EIFF और EM रेसर्जेंट फंड (EMR)—और ओपल इन्वेस्टमेंट्स के शेयर विनोद अडानी से जुड़े थे। इन कंपनियों ने अडानी ग्रुप को नियमों का पालन करते हुए दिखाने में मदद की।
इन निवेशकों ने अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर ऑफर-फॉर-सेल (OFS) से खरीदे। अडानी पोर्ट्स के शेयर इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट प्रोग्राम (IPP) से लिए गए। अडानी पावर के शेयर मर्जर के जरिए लिए गए। इन कंपनियों ने अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस में भी निवेश किया।
अदाणी एंटरप्राइजेज और अडानी पोर्ट्स में सार्वजनिक हिस्सेदारी, OFS (ऑफर फॉर सेल) और IPP (इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट प्रोग्राम) से पहले क्रमशः 20% और 23% थी। इन लेनदेन के बाद, दो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI)—EIFF और EMR—की हिस्सेदारी सहित, दोनों कंपनियों में सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़कर 25% हो गई।
अदाणी समूह की कंपनियों ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है और कहा है कि उनका सेटलमेंट आवेदन सिर्फ एहतियात के तौर पर दिया गया है। समूह से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि कंपनियों ने आरोपों का जवाब भी दिया है और सेबी के सबूतों को देखने की अनुमति मांगी है। रिपोर्ट के मुताबिक, “यह आवेदन आरोपों को मानने या खारिज करने के लिए नहीं, बल्कि प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए है।”
सेबी की जांच में यह सामने आया कि विदेशी निवेशकों (FPIs) पर विनोद अडानी का असर था। यह देखा गया कि इन निवेशकों ने अदाणी प्रमोटर्स के साथ कई अहम मामलों में, जैसे संबंधित लेनदेन और निदेशकों की नियुक्ति, एकजुट होकर वोटिंग की। इसके बावजूद, इनकी हिस्सेदारी को “पब्लिक” के तौर पर दिखाया गया, जबकि सेबी का कहना है कि इसे प्रमोटर ग्रुप की हिस्सेदारी माना जाना चाहिए।
सेबी ने 2020 में मिली शिकायतों के बाद जांच शुरू की। इन शिकायतों में कहा गया था कि अदाणी समूह की कंपनियां 25% पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियम का पालन नहीं कर रही हैं। इस मामले में सेबी ने विनोद अडानी और नौ अन्य से ₹1,984 करोड़ और पांच अन्य से ₹601 करोड़ वसूलने की बात कही है।