वेदांत की स्टरलाइट कॉपर द्वारा समीक्षा याचिका के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की उम्मीदों के बीच तांबा क्षेत्र और उस पर आश्रित उद्योगों को उम्मीद है कि अदालत देश की मौजूदा मांग-आपूर्ति की स्थिति पर विचार कर सकती है।
इंटरनैशनल कॉपर एसोसिएशन के आकलन के अनुसार संयंत्र बंद होने के बाद से पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत को तांबा निर्यात के लिहाज से प्रति वर्ष शुद्ध विदेशी मुद्रा आवक में न केवल लगभग एक अरब डॉलर का नुकसान हुआ है, बल्कि आपूर्ति अंतर को पूरा करने के लिए तांबा आयात के लिए प्रति वर्ष करीब 1.2 अरब डॉलर खर्च भी करने पड़े हैं।
साथ ही कंपनी के स्तर पर देखें तो यह वेदांत के लिए काफी बड़ा नुकसान है। दूसरी तरफ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस बात की संभावना नहीं है कि शीर्ष अदालत इसे दोबारा खोलने पर पुनर्विचार करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने 29 फरवरी को ‘गंभीर पर्यावरणीय उल्लंघनों और नियमों के बार-बार उल्लंघनों’ का हवाला देते हुए तमिलनाडु के तुत्तुकुडी (तूतीकोरिन) में इसके तांबा गलाने वाले संयंत्र को फिर से खोलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
इंटरनैशनल कॉपर एसोसिएशन इंडिया के प्रबंध निदेशक मयूर करमार्कर ने कहा कि स्टरलाइट की कमी की भरपाई आयात से की जा रही है। उद्योग ने तांबे का आयात करके समायोजन किया है, जो महंगा हो सकता है और इसमें कुछ ही लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियां हैं। स्टरलाइट संयंत्र बंद होने से न केवल तांबा उत्पादन बल्कि सल्फ्यूरिक एसिड सहित विभिन्न उप-उत्पादों के उत्पादन का भी नुकसान हुआ है।
भारत में तांबे की मांग में खासा इजाफा हुआ है और यह साल 2021-22 के 13.1 लाख टन से बढ़कर साल 2022-23 में 15.2 लाख टन हो गई है। करमार्कर ने कहा कि आपूर्ति पक्ष के संबंध में हालांकि तांबा गलाने की स्थापित क्षमता सालाना 9,50,000 टन है लेकिन मौजूदा परिचालन क्षमता सालाना 5,00,000 टन है।