रिलायंस इंडस्ट्रीज को तेल शोधन (रिफाइनिंग) कारोबार से होने वाली कमाई आगे भी जारी रह सकती है। जेएम फाइनैंशियल और गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों के अनुसार रूस से अधिक तेल आयात और वैश्विक स्तर पर तेल आपूर्ति सीमित रहना रिलायंस के लिए फायदेमंद साबित हो रहे हैं।
केप्लर के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले आठ महीनों में रिलायंस ने किसी भी अन्य भारतीय तेल शोधन कंपनियों के मुकाबले रूस से अधिक मात्रा में तेल का आयात किया है। अगस्त 2025 में रिलायंस ने लगभग 6,64,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) तेल खरीदा, जो इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के 341,000 बैरल और नायरा एनर्जी के 229,000 बैरल से काफी अधिक है।
भारत पेट्रोलियम ने 1,33,000 बीपीडी तेल खरीदा जबकि हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने केवल 28,000 बीपीडी तेल आयात किया। जून में रिलायंस की खरीदारी 7,46,000 बीपीडी तक पहुंच गई। इस लिहाज से रिलायंस का तेल शोधन कारोबार मजबूत हुआ है क्योंकि रूस के कच्चे तेल की कीमत आमतौर पर वैश्विक मानक से से कम होती है।
जेएम फाइनैंशियल ने कहा कि तेल से लेकर रसायन कारोबार कंपनी के मुनाफे को दम देता रहेगा मगर वैश्विक बाधाएं मार्जिन पर दबाव डालेंगी।
गोल्डमैन सैक्स के अनुसार रिलायंस की कर एवं ब्याज पूर्व आय (एबिटा) वित्त वर्ष 2025 में 2 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2026 में 16 प्रतिशत हो जाएगी, जिसमें खुदरा कारोबार और जियो के साथ रिफाइनिंग कारोबार का भी योगदान रहेगा।
रूस से अधिक मात्रा में कच्चा तेल खरीदने से इसी क्षेत्र की दूसरी कंपनियों की तुलना में रिलायंस अधिक फायदे की स्थिति में दिख रही है। रिलायंस ने वित्त वर्ष 2025 में 8.5 डॉलर प्रति बैरल का सकल रिफाइनिंग मार्जिन दर्ज किया, जबकि इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल का रिफाइनिंग मार्जिन क्रमशः 4.8 डॉलर प्रति बैरल, 6.8 डॉलर प्रति बैरल और एचपीसीएल का 5.7 डॉलर प्रति बैरल रहा था । पिछले एक साल में रिलायंस का मार्जिन बीपीसीएल और एचपीसीएल के मुकाबले लगातार मजबूत रहा है जबकि इंडियन ऑयल के साथ इसका कड़ा मुकाबला चल रहा है।
अगस्त में अपनी वार्षिक बैठक में रिलायंस ने उपभोक्ता उत्पादों, खुदरा, दूरसंचार और नव ऊर्जा क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी बढ़ाने का खास तौर पर जिक्र किया। हालांकि, विश्लेषकों ने कहा कि कंपनी की वित्तीय ताकत में रिफाइनिंग कारोबार लगातार अहम बना हुआ है। जेएम फाइनैंशियल ने कहा कि रिलायंस का मार्जिन निकट भविष्य में अधिक रहेगा।
हालांकि, दोनों ब्रोकरेज कंपनियों का कहना है कि खुदरा कारोबार से कम मुनाफा, परियोजनाओं में देरी और अधिक पूंजीगत व्यय कंपनी के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। वैश्विक स्तर पर तेल आपूर्ति सीमित रहने और रूस से कच्चे तेल पर कम लागत आने से रिलायंस इस क्षेत्र की ज्यादातर घरेलू कंपनियों से रिफाइनिंग मार्जिन हासिल करने के लिहाज से आगे रहेगी।