प्रॉपर्टी के आसमान छूते दाम और रॉकेट की रफ्तार से बढ़ते किराए ने आम आदमी को ही परेशान नहीं किया, बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इसकी मार से हलकान हैं।
हाल ही में किराये की चाबुक फ्यूचर समूह और फ्रांसीसी रिटेल कंपनी ईटीएएम पर पड़ी है। दोनों के साझे उपक्रम ‘ईटीएएम फ्यूचर’ के दिल्ली, सूरत और अहमदाबाद स्थित स्टोर्स में ज्यादा किराये की वजह से ताले पड़ गए।
रिटेल कंपनियों में वाकई किराए की वजह से ‘त्राहि-त्राहि’ मची हुई है। इससे पहले लिबर्टी शू को अपने नए ब्रांड ‘पेरिस’ को बाजार में उतारने की योजना ही मुल्तवी करनी पड़ी। ट्रूमार्ट के जरिए रिटेल में उतरी इंडियाबुल्स को तो सिर मुंडाते ही ओले पड़े। कारोबार शुरू किए उसे ज्यादा वक्त नहीं हुआ था कि ठाणे, जयपुर, पुणे और अहमदाबाद में उसे 5 स्टोर्स के शटर गिराने पड़े।
सातवें आसमान पर पहुंचते किराए अब रिटेल कंपनियों को खलने लगे हैं। मुनाफा बरकरार रखने के लिए वे या तो सस्ते इलाकों में जा रही हैं या स्टोर ही बंद कर रही हैं। अब तो वे निर्माण करने वाली कंपनियों से ‘रेंट फ्री’ यानी बिना किराए की अवधि बढ़ाने की भी मांग कर रही हैं। राजस्व में हिस्सेदारी की शर्त भी उन्हें अब नागवार गुजर रही है।
लॉक इन पीरियड को तो वे दूर से ही नमस्ते कर रहे हैं। लॉक इन पीरियड का मतलब वह अवधि है, जब तक कंपनी को अपना स्टोर उसी इमारत में रखना होता है। यानी उतने समय तक उसे किराया देना ही पड़ेगा। तमाम रिटेल कंपनियों के आला अधिकारियों से बातचीत में रेंटल का दर्द ही बिजनेस स्टैंडर्ड के सामने आया। उनके मुताबिक बिक्री का महज 10 या 12 फीसदी हिस्सा किराए के मद में जाना चाहिए, लेकिन अब यह बढ़कर 30 फीसदी तक हो गया है।
ईटीएएम फ्यूचर फैशन्स के मुख्य कार्यकारी जयदीप शेट्टी ने कहा, ‘हमने तय किया था कि अपनी बिक्री का 20 फीसदी से ज्यादा हिस्सा किराये के तौर पर नहीं देंगे। कुछ इलाकों में तो किराया बढ़कर बिक्री के बराबर पहुंच गया है, हम इसे कैसे बर्दाश्त करें।’
एक प्रॉपर्टी सलाहकार ने बताया कि 90 फीसदी से ज्यादा रिटेल कंपनियों को आजकल मुनाफा नहीं हो रहा। न घाटे और न मुनाफे में पहुंचने के लिए उन्हें जितना चाहिए, कई तो उसका आधा ही कमा पा रही हैं। इसकी वजह किराये में इजाफा ही है।यही वजह है कि रिटेल कंपनियां अब डेवलपर्स के साथ ज्यादा तोलमोल करने लगी हैं। वे लॉक इन पीरियड के बजाय राजस्व में हिस्सेदारी को तरजीह दे रही हैं।