बिज़नेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई इनसाइट समिट में उद्योग के दिग्गजों ने भारत के किफायती आवास क्षेत्र की चुनौतियों को उजागर किया। आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र में किफायती घरों की जबरदस्त मांग है। बावजूद डेवलपर ऊंची लागत और बाजार के दबाव के कारण किफायती घरों की परियोजनाओं को लेकर लगातार हिचकिचाहट दिखा रहे हैं।
एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी टी. अधिकारी ने बातचीत के दौरान भारत में किफायती घरों की लगातार मांग को उजागर किया। लेकिन उन्होंने आपूर्ति पक्ष की महत्त्वपूर्ण बाधाओं का हवाला भी दिया।
किफायती आवास बाजार में उतरने को लेकर डेवलपरों की अनिच्छा पर चिंता जताई गई।
अधिकारी ने कहा, ‘प्रमुख चुनौतियों में से एक जमीन की ऊंची लागत है जिससे परियोजनाएं कम व्यवहार्य हो जाती हैं।’ जमीन अधिग्रहण और नियामक मंजूरी में अधिक समय लगने के कारण लागत और देरी बढ़ जाती है। इससे डेवलपर और अधिक हतोत्साहित होते हैं।
नाइट फ्रैंक के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक गुलाम जिया ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि किफायती घरों की जबरदस्त मांग होने के बावजूद भी डेवलपर इन घरों की तुलना में ज्यादा कमाई वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता देते हैं। इसका कारण बेहतर वित्तीय व्यवहार्यता है। उन्होंने प्रीमियम आवासों की तरफ रुझान का संकेत देते हुए सवाल किया, ‘अगर एक परियोजना से किसी संगठन को उसके वार्षिक राजस्व लक्ष्य से करीब दोगुना मिल जाता है तो फिर क्यों कोई डेवलपर किफायती घरों की अनेक परियोजनाएं लाएगा।’
जिया ने यह भी उल्लेख किया कि मौजूदा ऊंची ब्याज दरों का दोहरा प्रभाव पड़ा है। इससे मांग और आपूर्ति दोनों प्रभावित हुई हैं। हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) 2.0 से मांग बढ़ना तय है लेकिन आपूर्ति की तंगी चिंता की बात है। जिया ने कहा, ‘ क्योंकि पीएमएवाई 2.0 से सबसे निचले पायदान वाले को प्रोत्साहन देती है, ऐसे में मांग बढ़ने की उम्मीद है लेकिन आपूर्ति कम रहने की आशंका है।’
आधार हाउसिंग फाइनैंस के एक्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन देव शंकर त्रिपाठी ने भारत के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में किफायती घरों की जबरदस्त मांग को उजागर किया। उन्होंने कहा, ‘अभी आवास की 95 प्रतिशत मांग इस खंड से आती है।’ लिहाजा इस आबादी के लिए आवास पहलों को अनुरूप बनाने की जरूरत है। त्रिपाठी ने बताया कि आवास ऋण के इच्छुक 64 प्रतिशत लोग 25 लाख रुपये से कम के ऋण के लिए आवेदन करते हैं जिससे किफायती घरों की बढ़ती मांग जाहिर होती है। उन्होंने भरोसे के साथ कहा, ‘किफायती घरों का अगले 25 साल तक मार्केट पर दबदबा रहेगा।’
पीएनबी हाउसिंग के एमडी और सीईओ गिरीश कोस्गी ने बाजार में खासी संभावनाएं होने के बावजूद किफायती आवासों की मांग और आपूर्ति में विषमता को उजागर किया। कोस्गी ने किफायती घरों में डेवलपरों की कम रुचि को उजागर करते हुए कहा, ’34 लाख करोड़ रुपये के बाजार में किफायती आवासों का कुल पोर्टफोलियो महज एक लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक है और यह बाजार की संभावना का एक हिस्सा भर है।’