प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी से भारत का चालू खाते का घाटा (सीएडी) बढ़ सकता है। इससे रुपये पर दबाव पड़ने की भी आशंका है। हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें एक दायरे में बनी रहती हैं तो वृद्धि और मुद्रास्फीति के समीकरण पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा।
भारत कच्चे तेल की अपनी 85 फीसदी से अधिक जरूरतों को आयात के जरिये पूरा करता है। इसलिए वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव उसके लिए काफी मायने रखता है। मई में ब्रेंट क्रूड की कीमत हालिया 60 से 61 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर से बढ़कर करीब 75 डॉलर प्रति बैरल हो गई। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कच्चे तेल के इंडियन बास्केट की कीमत मई में 64 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 13 जून तक 73.1 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
एचडीएफसी बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा कि भारत पर वृहद कारकों का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि तेल की कीमतों में आई हालिया तेजी आगे भी बरकरार रहती है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं और 80 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचती हैं तो उसका प्रभाव वित्त वर्ष 2026 के लिए हमारे सीएडी अनुमान में 30 से 40 आधार अंकों की वृद्धि के रूप में दिख सकता है।’
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि अगर कच्चे तेल के इंडियन बास्केट की औसत कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.1 फीसदी के अनुमान से बढ़कर 1.3 फीसदी तक हो सकता है।
आईडीएफसी फर्स्ट की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने कहा कि अगर कच्चे तेल की कीमत मार्च 2026 तक 75 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रहती है तो सीएडी जीडीपी के 1.5 फीसदी से बढ़कर 1.7 फीसदी तक पहुंच सकता है।
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि उन्होंने अपने अनुमानों में वित्त वर्ष 2026 के लिए इंडियन बास्केट के लिए 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल की औसत कीमत को ध्यान में रखा है जो एक साल पहले की 78.6 डॉलर प्रति बैरल औसत कीमत से कम है।
भारत ने 2020 से ही ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद कर दिया था। भारत का रूस से कच्चे तेल आयात 2022 से पहले लगभग शून्य था जो अब बढ़कर 35 से 40 फीसदी हो चुका है। हालांकि खाड़ी देशों से कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता काफी कम हो गई है। मगर कच्चे तेल का करीब दो-तिहाई और एलएनजी का 50 फीसदी आयात अभी भी होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है जिसे ईरान ने अब बंद करने की धमकी दी है।
आनंद राठी के मुख्य अर्थशास्त्री सुजैन हाजरा ने कहा कि अगर कच्चे तेल की औसत कीमत छह के लिए 65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 81 डॉलर प्रति बैरल हो जाती है, यानी उसमें करीब 25 फीसदी की वृद्धि होती है तो भी भारत के चालू खाते के घाटे में 0.3 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस भी सहमति जताई कि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का तात्कालिक प्रभाव रुपये पर दबाव और चालू खाते के घाटे में वृद्धि के रूप में दिखेगा।