सरकारी कंपनी एनटीपीसी (NTPC) लिमिटेड संकट में फंसी 1800 मेगावॉट क्षमता की केएसके महानदी (KSK Mahanadi) ताप बिजली परियोजना के लिए बोली लगाएगी। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। छत्तीसगढ़ में स्थित यह ताप बिजली परियोजना इस समय राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (NCLT) में कॉरपोरेट दीवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) से गुजर रही है।
कंपनी ने साल 2018 में 20,000 करोड़ रुपये बैंक ऋण के भुगतान में चूक की थी। परियोजना के लिए कर्ज देने वालों में सरकार की गैर बैंकिंग वित्तीय निगम (NBFC) PFC प्रमुख है।
इसके बात कर्जदाताओं ने हेयरकट और संपत्तियों की बिक्री के माध्यम से कर्ज के पुनर्गठन की पहल की।
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परियोजना के लिए बोली लगाने वाली कंपनियों में अदाणी पावर भी शामिल थी, लेकिन 2019 में उसने अपनी बोली वापस ले ली। उसके बाद कंपनी ने साल 2020 में ऋण शोधन अक्षमता एवं दीवाला संहिता (IBC) के तहत एनसीएलटी की शरण ली।
सूत्रों ने कहा कि NTPC केएसके के लिए बोली लगाएगी क्योंकि बिजली मंत्रालय इस बात पर जोर दे रहा है कि सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों की संकट में फंसी कंपनियों को सरकारी कंपनियां अपने नियंत्रण में लें।
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नवंबर 2023 में लिखे पत्र में केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने केंद्र व राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादन कंपनियों (जेनको) और राज्य के ऊर्जा/बिजली विभागों को उन परियोजनाओं को अपने हाथ में लेने को कहा था, जो दीवाला प्रक्रिया से गुजर रही हैं।
बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए राज्य बिजली के ज्यादा स्रोत तलाश रहे हैं और बिजली मंत्रालय ने दबाव वाले इन संयंत्रों की स्थिति में तेज बदलाव और बिजली आपूर्ति बढ़ाने की योजना बनाई है।
केंद्रीय बिजली मंत्रालय की ओर से 1 नवंबर को जारी परामर्श में कहा गया है, ‘सरकार की बिजली उत्पादन कंपनियों से अनुरोध किया गया है कि वे दबाव वाली बिजली की संपत्तियों की कॉर्पोरेट दीवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें, जो संबंधित राज्य की क्षमता बढ़ाने की योजना को देखते हुए रणनीतिक और वाणिज्यिक महत्त्व की हैं। यहां यह उल्लेख करना उचित है कि राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (NCLT) का रास्ता अपनाने का लाभ यह है कि ‘स्वच्छ राज्य’ सिद्धांत ऋण शोधन अक्षमता और दीवाला संहिता दिवाला (IBC), 2016 में अंतर्निहित है।’
बिजली मंत्रालय ने परामर्श में 4 संपत्तियों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें से एक केएसके महानदी भी शामिल है। यह परियोजना चालू हालत में थी और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश से बिजली खरीद समझौता भी हुआ था।
कोयले की आपूर्ति न होने के कारण कंपनी ने चूक किया। इसे छत्तीसगढ़ में 2 ब्लॉक आवंटित किए गए थे, लेकिन साल 2014 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद आवंटन रद्द कर दिया गया।
इस योजना को केंद्र सरकार की शक्ति योजना के तहत कोयले का लिंकेज मिला, लेकिन तंगी के कारण इसे कोयला आयात करना पड़ा।
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इसके पहले परियोजना को कर्ज देने वाले बड़े कर्जदारों में से एक एसबीआई ने अपनी समाधान योजना के तहत परियोजना के मसलों को हल करने की कोशिश की। इसका मकसद एनसीएलटी के बाहर दबाव वाली संपत्तियों से जुड़े मामलों का समाधान करना है।
बहरहाल अन्य कर्जदाताओं की सुस्ती और खरीदारों की कमी के कारण समाधान के तहत प्रक्रिया रोक दी गई और यह परियोजना सीआईआरपी में चली गई।