देश में दवा विकास और मंजूरी की समय-सीमा कम करने के उद्देश्य से केंद्रीय दवा नियामक न्यू ड्रग्स ऐंड क्लीनिकल ट्रायल्स (एनडीसीटी) नियम, 2019 में संशोधन की योजना बना रहा है। परीक्षण लाइसेंस आवेदनों के लिए लगने वाला प्रोसेसिंग से संबंधित समूचा समय 90 दिन से 45 दिन किया जा सकता है।
वैश्विक चिकित्सकीय परीक्षणों में भारत की हिस्सेदारी लगभग 8 प्रतिशत है। कई फार्मा कंपनियां नियामकीय बाधाओं के कारण अपने प्रारंभिक चरण के परीक्षण विदेशों में कराती हैं। 3 सितंबर की अधिसूचना में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रस्तावित संशोधनों पर सार्वजनिक सुझाव मांगे हैं। इनका उद्देश्य परीक्षण लाइसेंस प्राप्त करने और बायोएवेबिलिटी/बायोइक्विलेंस(बीए/बीई) अध्ययनों से संबंधित आवेदन पेश करने की शर्तों और प्रक्रियाओं को सरल बनाना है।
इन बदलावों से कंपनियों को खास चिकित्सकीय परीक्षण करने और बगैर लाइसेंस के इन परीक्षणों के लिए जरूरी दवाएं तैयार करने में मदद मिलेगी। हालांकि ये गतिविधियां सिर्फ नियामक को सूचित करने के बाद शुरू की जा सकती हैं। इन संशोधनों का उद्देश्य बीए/बीई अध्ययनों की शीघ्र शुरुआत सुनिश्चित करना भी है। हालांकि, यह रियायत केवल उन ओरल फॉर्मूलेशनों के मामले में लागू होगी जिन्हें पहले से ही यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा जैसे सख्त नियामकीय प्रणालियों वाले देशों में लागू किया जा चुका है।
प्रस्तावित प्रमुख संशोधनों में से एक परीक्षण लाइसेंस जारी करने की मौजूदा प्रणाली को अधिसूचना/सूचना प्रणाली में परिवर्तित करना भी शामिल है। आवेदक औषधि नियामक से लाइसेंस लेने के लिए प्रतीक्षा से बच सकते हैं और वे केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण को सूचित करने के बाद अपनी योजनाओं को आगे बढ़ा सकते हैं। अधिक जोखिम वाली दवाओं की एक छोटी श्रेणी को अभी भी यह मंजूरी लेनी होगी। हालांकि संशोधन के अनुसार परीक्षण लाइसेंस आवेदनों के लिए कुल वैधानिक प्रक्रिया का समय 90 दिन से घटाकर 45 दिन किया जा सकता है।
मंत्रालय का मानना है कि प्रस्तावित संशोधनों से केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को अपने मानव संसाधन का बेहतर उपयोग करने में मदद मिलेगी क्योंकि लाइसेंस आवेदनों की संख्या में संभावित रूप से 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। बीए/बीई अध्ययन, परीक्षण आदि की शीघ्र शुरुआत से दवा विकास और अनुमोदन प्रक्रियाओं में लगने वाला समय घटेगा।