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NCLAT का दिवालियापन धोखाधड़ी पर आदेश IBC की व्याख्या को उलझा सकता है

8 सितम्बर के आदेश में NCLAT ने कहा कि दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान अगर “धोखाधड़ी” होती है तो वह “सब कुछ निरस्त कर देगी, जिसमें समाधान योजना को मंजूरी देने वाला आदेश भी शामिल

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- September 30, 2025 | 7:13 AM IST

नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के हालिया आदेश ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के उस अधिकार को बरकरार रखा है जिसके तहत वह दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान धोखाधड़ी सामने आने पर किसी भी चरण में समाधान योजना (resolution plan) को वापस ले सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की व्याख्या में अनिश्चितता पैदा कर सकता है, खासकर जब सुप्रीम कोर्ट (SC) ने दिवालियापन कार्यवाहियों में लेनदारों की व्यावसायिक बुद्धिमत्ता (commercial wisdom) को सर्वोपरि माना है।

गांधी लॉ एसोसिएट्स के पार्टनर रहील पटेल कहते हैं, “धोखाधड़ी का इरादा एक खतरनाक रूप से व्यापक छतरी है। यदि इसे बहुत दूर तक खींचा गया तो यह उस अंतिमता को कमजोर करेगा जिसे सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित किया है। जहां शीर्ष अदालत ने लेनदारों की समिति की बुद्धिमत्ता को सर्वोच्च माना है, वहीं NCLAT का यह विचार कि किसी भी चरण में योजना वापस ली जा सकती है, भ्रम पैदा करता है और बोलीदाताओं का भरोसा घटाता है।”

आदेश और सुप्रीम कोर्ट का रुख

8 सितम्बर के आदेश में NCLAT ने कहा कि दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान अगर “धोखाधड़ी” होती है तो वह “सब कुछ निरस्त कर देगी, जिसमें समाधान योजना को मंजूरी देने वाला आदेश भी शामिल है।” उसने यह भी स्पष्ट किया कि प्रक्रिया का चरण अप्रासंगिक है यदि IBC की धारा 65 लागू होती है, जो धोखाधड़ी या दुर्भावनापूर्ण शुरुआत को दंडित करती है।

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यह रुख सुप्रीम कोर्ट के भूषण पावर एंड स्टील मामले से अलग है, जहां अदालत ने जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को बरकरार रखा था और चेतावनी दी थी कि स्वीकृत योजनाओं को फिर से खोलना “पैंडोरा का बॉक्स” खोलने जैसा होगा और IBC को कमजोर करेगा।

विशेषज्ञों की आशंकाएं

विशेषज्ञों का मानना है कि “धोखाधड़ी” की परिभाषा को लेकर अस्पष्टता समाधान योजनाओं को हमेशा चुनौती के दायरे में रख सकती है। हालांकि कुछ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत योजनाओं को वापस लेने के लिए उच्च मानदंड तय कर दिए गए हैं, जिससे NCLAT का आदेश केवल विरले मामलों में ही लागू होगा।

बी श्रावन्थ शंकर, सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, कहते हैं, “हालांकि IBC की धारा 65 धोखाधड़ी की पहचान का कोई तंत्र नहीं बताती, यह फिर भी दुर्भावनापूर्ण दाखिलों के खिलाफ सुरक्षा देती है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह संकेत देता है कि अदालतें अब अपने अधिकार का इस्तेमाल सीमित रूप से करेंगी और समाधान योजनाओं की अंतिमता को प्राथमिकता देंगी।”

लेकिन अन्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि स्पष्टता की कमी लंबे मुकदमों का रास्ता खोल सकती है। इक्विलेक्स के मैनेजिंग पार्टनर दीप रॉय कहते हैं, “समाधान आवेदकों को यह मानना होगा कि उनकी योजनाएं या अधिग्रहण लेन-देन अब भी संशोधित या निरस्त हो सकते हैं — भले ही उन्हें मंजूरी मिल चुकी हो या लागू हो चुकी हों। उन्हें ऐसे हालात के लिए सुरक्षा और मुआवजा तंत्र बनाना होगा।”

अल्फा पार्टनर्स के एसोसिएट पार्टनर चिराग गुप्ता कहते हैं: “अगर यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण हों कि दिवालियापन या परिसमापन लेनदारों को धोखा देने के लिए शुरू किया गया था, तो योजना किसी भी चरण में वापस ली जा सकती है।”

First Published : September 30, 2025 | 7:13 AM IST