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डेटा स्थानीयकरण पर बीच का रास्ता

Last Updated- December 10, 2022 | 11:10 AM IST

सरकार ने डेटा सुरक्षा विधेयक का मसौदा तैयार करते समय बीच का रास्ता अपनाया है। इसमें सरकार का अत्यधिक नियंत्रण नहीं होगा और न ही बड़ी तकनीकी कंपनियों को पूरी तरह आजादी दी जाएगी। यह कहना है कि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का। सुरजीत दास गुप्ता और सौरभ लेले से बातचीत में वैष्णव ने विधेयक के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। प्रस्तुत है संक्षिप्त अंश :डेटा स्थानीयकरण के सख्त रुख को बदलने के पीछे क्या वजह रही?

स्पष्ट तौर पर कहूं तो बहुत ज्यादा बदलाव नहीं किया गया है। अगर आपने पढ़ा होगा तो पिछले मसौदे में भी लचीले दृष्टिकोण को अनुमति दी गई थी। संशोधित मसौदे में हमने इसे अस्पष्ट बनाने के बजाए सरल बनाने का प्रयास किया है। कुछ देशों में सबकुछ सरकार के नियंत्रण में रहता है। कुछ देशों में बड़ी तकनीकी कंपनियों के हाथों में इसे छोड़ा गया है। भारत में हमने सार्वजनिक-निजी साझेदारी का मंच तैयार किया है जिसमें सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हैं और निजी नवोन्मेषी सेवाएं प्रदान करने के लिए इन डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं।
किस आधार पर ऐसे देशों का निर्धारण किया जाएगा है जहां व्यक्तिगत डेटा के मुक्त प्रवाह की अनुमति होगी? 
इसका बुनियादी सिद्धांत यह है कि भारतीय नागरिकों का डेटा सुरक्षित होना चाहिए। जिन देशों में बेहतर, सुरक्षित, गोपनीयता-संरक्षित पारिस्थितिकी तंत्र और एक कानूनी ढांचा है जहां किसी व्यक्ति की कोई भी शिकायत की सुनवाई हो सकती है, ऐसे कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इसकी प्रक्रिया हर देश के आधार पर अलग होगी। इसमें कूटनीति की अहम भूमिका होगी। डिजिटल अर्थव्यवस्था की वैश्विक समझ और द्विपक्षीय वार्ता को स्पष्ट रूप से समझना होगा। हमारे पास हमारे संप्रभु अधिकार होंगे। भारत के लिए जो अच्छा है, वही हम हमेशा करते हैं। देशों की सूची का निर्धारण एक सतत प्रक्रिया होगी।
क्या विधेयक को लेकर रिजर्व बैंक जैसे कई क्षेत्रों के साथ विवाद हो सकता है, जिन्होंने कुछ क्षेत्रों में डेटा के स्थानीयकरण के लिए आवश्यक नियम बनाए हैं? 
डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से बदल रही है। हमें इसके अनुरूप कानून बनाने होंगे जो विभिन्न परिस्थितियों के अनुकूल होने में सक्षम हों। इस विधेयक में सब कुछ सख्त नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन एक बुनियाद तैयार करनी चाहिए जिससे आप किसी विशेष क्षेत्र के लिए आवश्यक अन्य विनियमन बनाने में सक्षम हो सकें। यदि कोई विशेष क्षेत्र है जिसे अपने डेटा को स्थानीयकरण करने की आवश्यकता है, तो वे इसे बहुत अच्छी तरह से निर्धारित कर सकते हैं। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट जरूरत होती है। मूलभूत सिद्धांत वही रहते हैं, लेकिन उस क्षेत्र विशेष के द्वारा विनियम बनाए जा सकते हैं। 
क्या व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बोर्ड के पास नियामकीय शक्तियां होंगी?
बोर्ड के प्राथमिक उद्देश्य विवादों का समाधान करना, शिकायतों को निपटाना और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस विधेक को आसानी से लागू किया जा सके। यह पूरी तरह डिजिटल होगा। इसके तहत प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन होगी ताकि दिल्ली और बेंगलूरु या देश के किसी दूर-दराज के हिस्से में बैठे लोगों के लिए न्याय तक समान पहुंच हो।
विधेयक में बोर्ड की शक्तियों, उसके घटक एवं सदस्यों की नियुक्ति संबंधी मानदंड को परिभाषित नहीं किया गया है। क्या आप इसे स्पष्ट करेंगे?
हम नियमों पर तेजी से काम कर रहे हैं। इसमें विधेयक को लागू करने के लिए सभी प्रावधान होंगे। नियम बिल्कुल आसान होंगे। इसके लिए सलाह-मशविरा भी किया जाएगा। इस विधेयक को पेश करने के लिए हमारा लक्ष्य बजट सत्र है। इसके 30 दिनों का परामर्श किया जाएगा और उसके बाद उपयुक्त बदलाव किए जाएंगे।
इस विधेयक के कानून बनने के पांच से छह महीनों के भीतर हम इसके प्रावधान लागू करेंगे। अगले साल के अंत तक हमारे पास डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक, दूरसंचार विधेयक और डिजिटल इंडिया विधेयक होंगे।
मसौदा विधेयक में आपराधिक दंड के बजाए 250 करोड़ रुपये तक के अधिकतम जुर्माने का प्रावधान है। क्या आपको लगता है कि यह वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए पर्याप्त रकम होगी?
जुर्माने का प्रावधान हरेक मामले के लिए है। मान लीजिए कि यदि कोई बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी 1,000 डेटा प्रिंसिपल के लिए समस्याएं पैदा करने की कोशिश करती है तो उस 1,000 को 250 करोड़ रुपये से गुणा कर दीजिए। तब यह बहुत बड़ी रकम होगी।
सलाह-मशविरा के सीमित लोगों के बीच किया जाएगा या इसमें सब हिस्सा ले सकेंगे?
यह दोनों तरह से होगा। हमारी परामर्श प्रक्रिया शानदार है। दूरसंचार विधेयक के लिए परामर्श प्रक्रिया के दौरान मैंने व्यक्तिगत तौर पर करीब 18 अलग-अलग हितधारक समूहों से बातचीत की थी।
क्या इस मसौदा विधेयक को समीक्षा के लिए संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा?
हमने स्थायी समिति को पहले ही इसकी समीक्षा करने के लिए कहा है। हमने स्थायी समिति से इसका गअनुरोध किया है ताकि संसद में पेश करने से पहले हम उनके विचारों को इसमें शामिल कर सकें।

First Published - November 20, 2022 | 9:28 PM IST

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