एक साल की गिरावट के बाद इस साल के शुरुआती नौ महीनों में भारत में विलय एवं अधिग्रहण 13.8 फीसदी बढ़कर 69.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया है, जो पिछले साल के शुरुआती नौ महीनों में 60.8 अरब डॉलर था। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय कंपनियों और निजी इक्विटी फर्मों ने इसका नेतृत्व किया, जिन्होंने इस साल जनवरी से सितंबर के बीच 2,301 लेनदेन किए गए, जबकि पिछले साल सितंबर तक 1,855 लेनदेन दर्ज किए गए थे।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर ऐंड लीडर (प्राइवेट इक्विटी एवं सौदे) भाविन शाह ने कहा कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप के विकसित बाजारों के मुकाबले भारतीय बाजार का आकार और वृद्धि की क्षमता निवेशकों को काफी आकर्षित करती है, जिससे सौदों में इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा, ‘उच्च जीडीपी की वृद्धि दर और मजबूत शेयर बाजार के कारण भारत में उच्च मूल्यांकन हुआ है।’
इसके अलावा, ब्याज दरों और मुद्रास्फीति में उतार-चढ़ाव से पूंजी और उधार की लागत प्रभावित होती है, जिसके लिए रकम जुटाने की शर्तों, इक्विटी हिस्सेदारी और जोखिम-साझाकरण व्यवस्था में समायोजन की आवश्यकता होती है, जो बदले में मूल्यांकन को प्रभावित करती है। वास्तविक विनिमय दरों में बदलाव से सीमा पार लेनदेन भी प्रभावित हुआ है।
ग्रांट थॉर्टन भारत के पार्टनर विशाल अग्रवाल ने कहा कि दुनिया के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग व्यवहार करते नजर आते हैं। पश्चिमी एशिया विदेशी निवेश के एक प्रमुख आकर्षण के रूप में उभरा है और यह उन पूंजी को आकर्षित करने पर केंद्रित है जो स्वयं देशों में निवेश करने और उद्योग और बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पश्चिमी देश चीन से दूर जा रहे हैं, लेकिन पश्चिम एशिया वहां निवेश करना जारी रखता है।