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हिंदी फिल्मों पर नहीं छाया मंदी का साया

Last Updated- December 09, 2022 | 11:46 PM IST

वित्त वर्ष 2008-09 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान बॉक्स ऑफिस कमाई ने हर तरह की अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया, जिनके मुताबिक फिल्म उद्योग का भविष्य भी पूरे कारोबारी चक्र से जुड़ा हुआ है।
इस तिमाही के दौरान टिकटों की जबरदस्त बिक्री ने इस बात को और भी पुख्ता कर दिया है कि इन दोनों में कोई संबंध नहीं है। इसके अलावा आर्थिक संकट कितना भी बड़ा और भयंकर क्यों न हो, दर्शक अच्छी फिल्में देखने के लिए थिएटरों तक पहुंच रहे हैं।
वितरकों, विश्लेषकों और कारोबारी पोर्टलों से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर में समाप्त तिमाही के दौरान लगभग 40 फिल्में रिलीज हुई हैं। इनमें से 31 फिल्मों की सकल आय तकरीबन 680 करोड़ रुपये रही। यह कमाई वर्ष 2008 के 12 महीनों के दौरान लगभग 130 हिंदी फिल्मों के रिलीज से होने वाली कुल कमाई का लगभग 70 प्रतिशत है।
उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि मल्टीप्लेक्सों और एक स्क्रीन वाले थिएटरों में आने वाले दर्शकों की औसत संख्या अक्टूबर-दिसंबर, 2008 तिमाही में बेहतर हुई है। मुंबई के एक उद्योग विशेषज्ञ का कहना है, ‘सभी थिएटरों में दर्शकों की औसत संख्या सप्ताह में 60 से 65 प्रतिशत रही है।’
अगर पिछले कुछ महीनों से इन आंकड़ों की तुलना करें तो एक समय वह भी था जब थिएटरों में पहुंचने वाले दर्शकों की संख्या घटकर 40 प्रतिशत रह गई थी। सिर्फ इतना ही नहीं बॉक्स ऑफिस का अच्छा दौर जनवरी में भी जारी रहा।
जनवरी में लगभग आधा दर्जन हिंदी फिल्में रिलीज हुई, जिनकी कमाई लगभग 52 करोड़ से 55 करोड़ रुपये रही। पिछले साल जनवरी माह के मुकाबले यह 10 से 12 प्रतिशत बेहतर नतीजा है। अब सभी की आंखें फरहान अख्तर की ‘लक बाई चांस’, शाहरुख खान की ‘बिल्लू बारबर’, अभय देओल की ‘देव डी’ और अभिषेक बच्चन की ‘दिल्ली 6’ से लगी हुई हैं। 
जहां पूरी अर्थव्यवस्था अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, वहीं फिल्म उद्योग को मंदी की हवा छू भी नहीं पाई है। फैक्टरियों में उत्पादन कम होते जा रहा है और हजारों लोग बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। नकदी की कमी कारोबारियों को परेशान कर रही है और ग्राहकों ने अपनी खरीद को काफी कम कर दिया है।
नौकरियों में बन रही अनिश्चितता ने इस स्थिति को बद से बदतर किया है । कुछ महीने पहले फिल्म निर्माता और एक्जिबिटरों ने इशारा किया था कि उनके कारोबार पर भी मंदी का असर पड़ सकता है। उनके मुताबिक ग्राहक सबसे पहले मनोरंजन के खर्च को कम कर थिएटरों से मुंह मोड़ेंगे। आज मल्टीप्लेक्स की टिकटें पहले की तरह महंगी नहीं रहीं और चार सदस्यों का एक परिवार 1,000 रुपये में फिल्म देख सकता है।
हालांकि दिसंबर में रिलीज हुई फिल्मों ‘रब ने बना दी जोड़ी’ और ‘गजनी’ और अक्टूबर और नवंबर में रिलीज हुई ‘फैशन’, ‘गोलमाल रिटर्न्स’ और ‘दोस्ताना’ ने फिल्म निर्माताओं और एक्जिबिटरों के डर को गलत साबित कर दिया।
फिल्म निर्माताओं का मानना है कि पैसा कमाना इतना आसान नहीं है और माना जा रहा है कि कुछ फिल्मी कलाकारों (खासतौर पर ‘चांदनी चौक टु चाइना’ की नाकामयाबी के बाद अक्षय कुमार) ने फिल्मों को साइन करने के लिए अपनी बोली घटा दी है।
बावजूद इन सभी के दर्शकों ने यह साबित कर दिया है कि उनके सामने कुछ भी आए, वे बढ़िया फिल्म को हाथोंहाथ लेंगे। पीवीआर सिनेमा के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘हमारा हमेशा से यह मानना है कि बॉलीवुड मंदी से बिलकुल जुदा है। किसी भी फिल्म की कामयाबी और नाकामयाबी उसके मसाले, सही मार्केटिंग और वितरण पर निर्भर करती है।’

First Published - February 3, 2009 | 10:27 AM IST

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