उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता विनीत गोयनका की ओर से दायर जनहित याचिका पर सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों खासकर ट्विटर को शुक्रवार को नोटिस जारी किया। अदालत ने नोटिस में कहा है कि सरकार फर्जी खबरों की जांच करने और सोशल मीडिया पर भड़काने वाले संदेशों और विज्ञापनों पर नजर रखने के लिए एक व्यवस्था बनाए। याचिका में कहा गया है कि किसी प्रणाली या कानून के अभाव में ट्विटर इंक या ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और इसी तरह के अन्य सोशल मीडिया मंचों को विज्ञापन के रूप में वैसी सामग्री को प्रसारित करने या बढ़ावा देने से रोका नहीं जा रहा है जो अलगाववादी एजेंडा, देशद्रोही सामग्री का प्रसार करने के साथ समुदायों के बीच नफरत बढ़ाने, बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ विभाजनकारी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं तथा देश की संघीय भावना के खिलाफ हैं। शुक्रवार को याची की तरफ से वकील अश्विनी कुमार दुबे पेश हुए।
गोयनका ने यह जनहित याचिका पिछले साल मई में दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया का इस्तेमाल सरकारी अधिकारियों और विभागों द्वारा सार्वजनिक कामों को करने के लिए किया जाता है इसलिए ये मंच सार्वजनिक कर्तव्यों को भी निभा रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही ये मंच फर्जी और देशद्रोही संदेशों को फैलाने, प्रकाशित करने और बढ़ावा देने में भी लिप्त रहते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। गोयनका ने यह याचिका तब दायर की जब उन्होंने 2019 में एक ‘प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन’ का पोस्ट देखा जो उनके ट्विटर टाइमलाइन पर एक पेड सामग्री के तौर पर दिख रहा था। याचिका में कहा गया है, ‘ट्विटर और सोशल मीडिया कंपनियां लाभ कमाने वाली कंपनियां हैं और उनसे यह उम्मीद करना महत्त्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया सुरक्षित रहे और वे सुरक्षा उपायों पर गौर करें।’ यह नोटिस ऐसे वक्त में आया है जब सरकार और ट्विटर के बीच कुछ सामग्री हटाने को लेकर गतिरोध की स्थिति बनी है। इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर से कुछ खातों को ब्लॉक करने के साथ ही कथित विवादास्पद सामग्री हटाने का निवेदन भी किया था।
