कर्मचारियों के बढ़ते स्थानीयकरण और ज्यादातर कार्य को देश से बाहर पूरा कराना ऐसे कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव हैं जिन पर आईटी सेवा कंपनियां अमेरिका में वीजा लागत बढऩे के प्रभाव से बचने के लिए इस्तेमाल करने की संभावना तलाश रही हैं।
अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा विभाग (यूएससीआईएस) ने पिछले सप्ताह गैर-प्रवासी वीजा पर बढ़े हुए शुल्क को अपनी मंजूरी प्रदान की थी और यह बदलाव इस साल अक्टूबर से प्रभावी होगा। एच-1बी हाई-स्किल वीजा के लिए आवेदन शुल्क 21 प्रतिशत तक बढ़ाकर 555 डॉलर किया गया है, जबकि एल1 (इंट्रा-कंपनी ट्रांसफर) वीजा के लिए यह 75 प्रतिशत तक बढ़ाकर 850 डॉलर किया गया है।
जहां भारतीय आईटी सेवा कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय अमेरिकियों की नियुक्ति के प्रयास तेज किए हैं, वहीं अब इस रफ्तार में और तेजी आने की संभावना बढ़ गई है। विश्लेषकों का कहना है कि लेकिन देश में तकनीकी तौर पर योग्य कार्यबल की पर्याप्त संख्या को देखते हुए इनमें से कई कंपनियां अपने और कार्य भारत समेत अन्य देशों में स्थानांतरित करने के लिए बाध्य हो सकती हैं।
उद्योग संगठन नैसकॉम ने कहा है, ‘अमेरिका स्थित उद्यमों को ज्यादातर तकनीकी कार्य ऐसे देशों में स्थानांतरित करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा जहां व्यापक प्रतिभाएं उपलब्ध हैं।’ नैसकॉम का कहना है कि वीजा शुल्क वृद्घि का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
अमेरिकी प्रशासन द्वारा आव्रजन-विरोधी रुख 2016 में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल के शुरू से ही देखा गया है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इन्फोसिस और टेक महिंद्रा जैसी प्रमुख आईटी कंपनियां वीजा अनिश्चितताएं दूर करने के लिए अमेरिका में स्थानीय प्रतिभाओं पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं।
टेक महिंद्रा के मुख्य कार्याधिकारी एवं प्रबंध निदेशक सीपी गुरनानी ने कहा, ‘एच1बी वीजा पर भारतीय उद्योग जगत की निर्भरता घटी है। हमारे करीब 45 प्रतिशत कर्मी स्थानीय हैं और निश्चित तौर पर दिसंबर तक एच1बी वीजा की जरूरत सामान्य के मुकाबले काफी कम रह जाएगी।’ विप्रो का सेवाओं से ऑफशोर राजस्व मार्च तिमाही के 48.2 प्रतिशत और पिछले साल की समान अवधि के 47.7 प्रतिशत से बढ़कर जून तिमाही में 48.5 प्रतिशत हो गया। इन्फोसिस के लिए यह आंकड़ा 72 प्रतिशत पर सपाट बना रहा।