वित्त मंत्रालय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इन्फोसिस को मिले 30,000 करोड़ रुपये के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के नोटिस पर राहत देने पर विचार कर रहा है। इसके लिए 26 जून के सर्कुलर में जरूरी संशोधन किया जाएगा क्योंकि इसी के आधार पर आईटी दिग्गज को जीएसटी नोटिस भेजा गया था। घटनाक्रम से सीधे तौर पर जुड़े वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी जानकारी दी।
अधिकारी ने कहा, ‘सरकार इन्फोसिस को राहत देने के लिए 26 जून के सर्कुलर 210 में आवश्यक संशोधन कर सकती है। इसके तहत नोटिस को अमान्य घोषित किया जा सकता है या कर देनदारी को कम किया जा सकता है।’
केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने सर्कुलर 210 जारी किया था, जिसके तहत सेवा प्राप्तकर्ता पूर्ण इनपुट टैक्स क्रेडिट के पात्र होने पर संबंधित व्यक्ति द्वारा सेवाओं के आयात का मूल्य स्पष्ट किया गया था।
अधिकारी ने आगे कहा कि सीबीआईसी फिलहाल इन्फोसिस को जीएसटी से पहले भेजे गए कारण बताओ नोटिस का मूल्यांकन कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘हम साल दर साल आधार पर मामले का विश्लेषण करेंगे। उपलब्ध विकल्पों में से एक सीजीएसटी नियम, 2017 के नियम 28 को लागू करने की संभावना पर विचार किया जाएगा।’
केंद्रीय जीएसटी का नियम 28 विशिष्ट या संबंधित व्यक्तियों के बीच वस्तुओं या सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के मूल्य के निर्धारण का प्रावधान करता है। यही नियम अलग-अलग या संबंधित पक्षों के बीच वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति के कर योग्य मूल्य की गणना के लिए वैकल्पिक तरीकों को भी निर्धारित करता है।
जुलाई में जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) ने इन्फोसिस को 32,403 करोड़ रुपये का जीएसटी पूर्व-कारण बताओ नोटिस भेजा था। इसमें दावा किया गया था कि कंपनी 2017-18 से 2021-22 के दौरान अपनी विदेशी शाखाओं से आयातित सेवाओं पर रिवर्स-चार्ज मैकेनिज्म के तहत जीएसटी का भुगतान करने में विफल रही थी। मगर इन्फोसिस द्वारा उस अवधि के लेनदेन के संबंध में दस्तावेज उपलब्ध कराने के बाद डीजीजीआई ने वित्त वर्ष 2017-18 से संबंधित 3,898 करोड़ रुपये के नोटिस को वापस ले लिया था।
3 अगस्त को स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में कंपनी ने कहा था कि उसे वित्त वर्ष 2017-18 के लिए भेजे गए 3,898 करोड़ रुपये का कर मांग नोटिस बंद कर दिया गया है।
डेलॉयट इंडिया में पार्टनर हरप्रीत सिंह ने कहा, ‘सामान्य तौर पर प्रधान कार्यालय और शाखा कार्यालय के बीच लेनदेन वित्तीय फंडिंग प्रकृति का होता है जिस पर जीएसटी की देनदारी नहीं बनती है। इसलिए किसी को कर देनदारी निर्धारित करने से पहले प्रधान कार्यालय और शाखा कार्यालय के बीच लेनदेन का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।’