भारत की टायर बनाने वाली कंपनियां लगातार दूसरे साल एक अंक में राजस्व वृद्धि के लिए तैयार हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि वित्त वर्ष 2024 में इसकी वृद्धि 7 से 8 फीसदी रह सकती है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल रेटिंग्स ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। यही स्थिति पिछले साल भी रही थी, जो वित्त वर्ष 2021 से वित्त वर्ष 2023 के बीच हुई 21 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) के मुकाबले भारी नरमी को दर्शाता है।
भले ही प्राकृतिक रबर की बढ़ती कीमतों से उद्योग जूझ रहा है मगर मामूली वृद्धि प्राप्तियों और मात्रा में 3 से 4 फीसदी बढ़ोतरी के कारण होगी, जिसे धीरे-धीरे बढ़ती कीमतों और टायर बदलने की मांग से मदद मिलेगी। टायर उत्पादन के लिए कच्चे माल का करीब आधा हिस्सा प्राकृतिक रबर को माना जाता है और थाईलैंड एवं वियतनाम जैसे प्रमुख उत्पादक देशों में खराब मौसम होने के कारण वैश्विक कमी के कारण इसकी कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है।
क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस भारी वृद्धि के साथ-साथ ग्राहकों पर लागत भार डालने से परिचालन लाभप्रदता में कमी आने के आसार हैं, जो बीते वित्त वर्ष के 16 फीसदी से करीब 300 आधार अंक कम होकर 13 फीसदी हो सकती है।
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी ने कहा, ‘टन के लिहाज से टायर उद्योग की बिक्री में घरेलू मांग की हिस्सेदारी 75 फीसदी रहती है, जिसमें से दो तिहाई हिस्सेदारी टायर बदलने वाले बाजार की श्रेणी से आता है और यह मुख्य रूप से वाणिज्यिक और यात्री वाहनों के लिए होता है। यह श्रेणी इस साल मात्रात्मक वृद्धि को बल देगा जबकि वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में गिरावट से ओईएम मांग में महज 1 से 2 फीसदी वृद्धि होने की संभावना है।’
उद्योग की कुल बिक्री में करीब 25 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले निर्यात को भी इस साल प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में कमजोर मांग, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और माल ढुलाई लागत बढ़ने से भी निर्यात की संभावनाओं पर असर पड़ रहा है। वित्त वर्ष 2024 में निर्यात में सिर्फ 2-3 फीसदी वृद्धि रहने का अनुमान है। इन चुनौतियों के बावजूद प्रमुख टायर विनिर्माताओं की क्रेडिट प्रोफाइल दमदार बहीखातों और सोच-समझकर की गई पूंजीगत व्यय के कारण स्थिर रहने की उम्मीद है।