उद्योग

PM’s Internship Scheme: युवाओं के लिए सीखने का सुनहरा मौका, लेकिन कई चुनौतियां भी

अक्टूबर 2024 से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रही इस स्कीम का लक्ष्य पांच साल में देश के टॉप 500 कंपनियों में 1 करोड़ युवाओं को सालभर की इंटर्नशिप देना है।

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- August 02, 2025 | 10:59 AM IST

प्रधानमंत्री इंटर्नशिप स्कीम (PMIS) युवाओं को इंडस्ट्री की जरूरत के हिसाब से ट्रेनिंग देने के लिए शुरू की गई है। अक्टूबर 2024 से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रही इस स्कीम का लक्ष्य पांच साल में देश के टॉप 500 कंपनियों में 1 करोड़ युवाओं को सालभर की इंटर्नशिप देना है।

युवाओं का अनुभव

सोलापुर (महाराष्ट्र) के यश पाडवलकर के पास जब उन्होंने इस स्कीम में आवेदन किया, तब उनके पास लैपटॉप तक नहीं था। मोबाइल पर यूट्यूब देखकर कोडिंग सीख रहे थे। स्कीम से उन्हें लैपटॉप, बेहतरीन लर्निंग संसाधन और इंडस्ट्री का अनुभव मिला। पुणे में एक टेक्नोलॉजी कंपनी में उन्होंने क्लाउड कंप्यूटिंग और डेटा इंजीनियरिंग सीखी और धीरे-धीरे असली प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू किया।

नागपुर के सर्वेश ब्रह्माने को शुरुआत से ही एक बड़ी टेक कंपनी के एडवांस AI डिविजन में जटिल प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला। वहीं, तेलंगाना के चरन मूड ने पहले बेसिक टास्क से शुरुआत की, लेकिन खुद आगे बढ़कर जिम्मेदारियां मांगीं तो बड़े प्रोजेक्ट्स में शामिल हुए।

कुछ इंटर्न्स को मेंटर का पूरा सहयोग मिला, लेकिन कुछ को यह सुविधा नहीं मिली। आगरा की आकृति सक्सेना एक होटल चेन में इंटर्नशिप कर रही हैं। उनका कहना है कि अगर पर्सनल मेंटर मिलता तो अनुभव और बेहतर हो सकता था।

सरकार और इंडस्ट्री की कोशिशें

सरकारी अधिकारियों का मानना है कि इंटर्नशिप का ढांचा बहुत सख्त नहीं होना चाहिए, ताकि युवा अलग-अलग विभागों में घूमकर सीख सकें। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) और कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय (MCA) कंपनियों और इंटर्न्स को स्कीम के बारे में जागरूक करने के लिए ऑनलाइन सत्र कर रहे हैं।

MCA ने इंटर्नशिप पोर्टल पर शिकायत निवारण व्यवस्था बनाई है और राज्यों को फीडबैक के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा है।

चुनौतियां

ज्यादातर युवाओं ने कहा कि स्कीम से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है, लेकिन इंटर्नशिप खत्म होने के बाद आगे क्या होगा, इस पर स्पष्टता नहीं है। कई बार परिवार वालों को समझाना मुश्किल होता है कि यह फुल-टाइम नौकरी नहीं है और आर्थिक मदद की जरूरत पड़ेगी।

स्टाइपेंड भी एक बड़ी चुनौती है। ₹5,000 महीने का भत्ता बड़े शहरों के खर्च पूरे नहीं कर पाता। कुछ कंपनियां अपनी ओर से ज्यादा स्टाइपेंड और सुविधाएं दे रही हैं, लेकिन यह सभी जगह नहीं हो रहा।

पहले पायलट में कंपनियों ने 82,000 ऑफर दिए, 60,000 युवाओं ने स्वीकार किया, लेकिन सिर्फ 8,700 ने ज्वॉइन किया। संसदीय वित्त स्थायी समिति ने भी खर्च के मुद्दे पर चिंता जताई और कहा कि स्कीम को पारदर्शी और समावेशी बनाने के लिए समय-समय पर स्वतंत्र समीक्षा जरूरी है।

First Published : August 2, 2025 | 10:59 AM IST