भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टील बनाने वाला देश है। यहां इस्तेमाल होने वाले कोयले का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा दूसरे देशों से मंगाया जाता है। इस कोयले को कोकिंग कोयला कहते हैं, जिसका इस्तेमाल स्टील बनाने में होता है।
सरकार ने सोचा था कि सरकारी कंपनियों को एक साथ लाकर कोयले की खरीद की योजना बनाई जाएगी। इससे कोयले की कीमत कम हो सकती थी। लेकिन अब इस योजना को रद्द कर दिया गया है। इसकी वजह है कि अलग-अलग कंपनियों को अलग-अलग तरह के कोयले की जरूरत होती है, जिससे योजना पर सहमति नहीं बन पाई।
स्टील कंपनियों की अलग-अलग जरूरतें
एक अधिकारी ने बताया कि स्टील बनाने वाली कंपनियां मिलकर कोयले की खरीद करें, यह अच्छा विचार है। लेकिन इन कंपनियों को अलग-अलग तरह के कोयले की जरूरत होती है। इसलिए एक ही जगह से सारा कोयला खरीदना मुश्किल होगा।
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में खराब मौसम के कारण कोयले की सप्लाई में दिक्कत हुई थी। ऑस्ट्रेलिया से भारत को 50 प्रतिशत से ज्यादा कोयला आता है। इसकी वजह से कोयले की कीमतें बहुत बढ़ गई थीं। भारत कोयला अमेरिका, रूस और कनाडा से भी मंगाता है।
कुछ स्टील कंपनियों का मानना है कि अगर वे मिलकर कोयला खरीदें तो उन्हें जो छूट मिल रही है, वह बंद हो सकती है। वहीं, सरकार चाहती है कि कंपनियां बाजार से ज्यादा कोयला खरीदें, जिससे कोयले की खरीद-बिक्री बढ़ेगी। कुल कोयले की खरीद-बिक्री में से 20 प्रतिशत हिस्सा सीधा बाजार से होता है। स्टील कंपनियों और सरकार का कहना है कि जो कीमतें तय की जाती हैं, वे हमेशा सही नहीं होतीं। भारत को अपनी खुद की कीमतें तय करनी चाहिए।
भारत कोयले के लिए दूसरी जगहों पर भी देख रहा है
भारत में कोयले की कीमतें आमतौर पर एक कंपनी के तय किए गए दाम पर होती हैं, जिसका नाम एस एंड पी ग्लोबल प्लैट्स है। सरकार चाहती है कि भारत दूसरे देशों से भी कोयला खरीदे, जैसे रूस। इससे ऑस्ट्रेलिया पर निर्भरता कम होगी। भारत मंगोलिया से भी कोयला लाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन मंगोलिया के पास समुद्र नहीं है। इसलिए रास्ता खोजा जा रहा है। (रॉयटर्स के इनपुट के साथ)