शुल्क जंग के कारण मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय निर्यातकों को सहारा देने के लिए सरकार कई उपाय कर रही है। इसी क्रम में रत्न एवं आभूषण क्षेत्र के लिए ड्यूटी ड्रॉबैक दरें बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा 2,250 करोड़ रुपये के ‘निर्यात संवर्धन मिशन’ को तेजी से लागू करने की योजना है। इससे भारतीय निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलेगी।
वित्त मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी अधिसूचना के अनुसार, सोने और चांदी के आभूषणों के लिए ड्यूटी ड्रॉबैक दरों में वृद्धि की गई है। उदाहरण के लिए, सोने के आभूषणों के लिए ड्यूटी ड्रॉबैक दर को वस्तु में शुद्ध सोने की मात्रा के प्रति ग्राम 335.5 रुपये से बढ़ाकर 405.4 रुपये कर दिया गया है। वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के दायरे में आने वाली ड्यूटी ड्रॉबैक योजना के तहत भारत में विनिर्मित एवं निर्यात की गई वस्तुओं पर आयात शुल्क को रिफंड किया जाता है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने निर्यातकों की मदद के लिए फरवरी में केंद्रीय बजट में घोषित 2,250 करोड़ रुपये के निर्यात संवर्धन मिशन के प्रस्ताव को भी अंतिम रूप दे दिया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि यह प्रस्ताव व्यय वित्त समिति (ईएफसी) के एक नोट के रूप में है जिसे अगले महीने तक मंजूरी मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि उसके बाद प्रस्ताव को मंजूरी के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास भेजा जाएगा।
अधिकारी ने कहा, ‘ईएफसी नोट को अंतिम रूप दे दिया गया है और उसे जल्द से जल्द मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। उसके बाद हमें मंत्रिमंडल से मंजूरी लेनी होगी जिसके लिए अंतर-मंत्रालयी परामर्श की भी आवश्यकता होगी।’ यह पहल ऐसे समय में की जा रही है जब अमेरिका ने अपने प्रमुख व्यापार भागीदारों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की है। अमेरिका के जवाबी शुल्क के कारण भारतीय निर्यातकों की लागत बढ़ गई है।
अमेरिकी खरीदार अब छूट की मांग करते हुए अनुबंधों पर नए सिरे से बातचीत कर रहे हैं। इसके अलावा अमेरिका अपनी शुल्क नीतियों में लगातार बदलाव कर रहा है और चीन के साथ उसका व्यापार युद्ध गहराने लगा है। इससे वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ गई है और नए ऑर्डर भी प्रभावित हुए हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने इस मिशन के तहत आधा दर्जन योजनाओं को अंतिम रूप दिया है।
उसमें बाजार पहुंच पहल (एमएआई) और ब्याज समतुल्यकरण योजना (आईईएस) भी शामिल हैं जिसकी अवधि 31 दिसंबर को समाप्त हो चुकी है। इसके अलावा छोटे निर्यातकों के लिए विशेष तौर पर नई योजनाएं तैयार की जा रही हैं ताकि उन्हें बिना रेहन के ऋण हासिल करने में मदद मिल सके। इससे उन्हें विकसित देशों द्वारा लागू किए जा रहे गैर-शुल्क उपायों से राहत के लिए आवश्यक अनुपालन सुनिश्चित करने और बाजार जोखिम से निपटने में मदद मिलेगी। हालांकि आईईएस में बड़े बदलाव की जरूरत होगी क्योंकि इस मिशन के तहत आवंटित फंड काफी कम है।
आईईएस एक ब्याज सहायता योजना है। इसके तहत निर्यातकों को खेप भेजने से पहले और बाद में रुपये में लिए गए निर्यात ऋण पर बैंकों द्वारा ली जाने वाली ब्याज की भरपाई की जाती है। इसके लिए सरकार बाद में ऋणदाताओं को मुआवजा देती है। यह योजना 2015 में 5 साल के लिए लाई गई थी ताकि निर्यातकों और विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों का दबाव कम किया जा सके। बाद में समय-समय पर इस योजना को आगे बढ़ाया गया है। बहरहाल वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच एमएसएमई निर्यातकों को मदद करने वाली योजनाओं के लिए वाणिज्य विभाग को अतिरिक्त रकम की जरूरत हो सकती है।