उद्योग जगत के दिग्गजों ने कर्नाटक सरकार के उस फरमान की आलोचना की है, जिसमें राज्य में काम कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को स्थानीय कर्मचारियों की संख्या बताने के लिए कहा गया है। उनका मानना है कि इस मामले में राजनीति के बजाय योग्यता पर जोर दिया जाना चाहिए।
इन्फोसिस के निदेशक मंडल में रह चुके एक्सफिनिटी वेंचर्स के चेयरमैन वी बालकृष्णन ने कहा, ‘कंपनियों को इस बात के लिए मजबूर करना अच्छी बात नहीं है कि वे स्थानीय लोगों को ज्यादा काम दें। इसके बजाय सरकार सरकार कंपनियों को इस तरह प्रोत्साहित करे ताकि वे स्थानीय लोगों के लिए ज्यादा और बेहतर रोजगार तैयार करे। आईटी वैश्विक उद्योग है और ऐसी नीतियां इसे फायदा नहीं देंगी।’
आरिन कैपिटल पार्टनर्स के चेयरमैन और इन्फोसिस बोर्ड के पूर्व सदस्य टीवी मोहनदास पई ने कहा, ‘कर्नाटक के एक मंत्री ने हाल में बयान दिया है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नोटिस बोर्ड पर यह लिखने के लिए कहा जाएगा कि उसके यहां कितने कन्नड़ कर्मचारी काम करते हैं। यह फिजूल की बात है। अगर कर्नाटक सरकार चाहती है कि राज्य के लोगों के लिए अधिक से अधिक रोजगार मिले तो उसे उच्च शिक्षा और कौशल विकास पर अधिक खर्च करना चाहिए। उत्तरी कर्नाटक के लोगों के लिए खास तौर पर ऐसा करना होगा क्योंकि वहां अच्छे शैक्षणिक संस्थान नहीं हैं।’
पई ने कहा कि बेंगलूरु में कोई भी उद्योग नियुक्ति के मामले में किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है। उन्होंने कहा, ‘कर्नाटक में मौजूद आईटी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियां वस्तुनिष्ठ परीक्षा एवं साक्षात्कार के जरिये नियुक्ति करती हैं। सरकार को समझना चाहिए कि कर्नाटक में दफ्तर खोलने के लिए लोगों की कोई कतार नहीं लगी है। हर राज्य होड़ में है और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभाने की कोशिश कर रहा है ताकि उसके यहां रोजगार के अवसर पैदा हों। ऐसी हरकतें रास्ते ही रोकेंगी, जो लोग नहीं चाहते हैं।’
बेंगलूरु में ही एक अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि रोजगार का पैमाना योग्यता होनी चाहिए भाषा नहीं। उन्होंने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘कर्नाटक का विकास इसीलिए हुआ है कि यहां सभी को समान मौके दिए जाते हैं। कंपनियों और राज्य के भीतर नवाचार को बढ़ावा देने के लिए यह बहुत जरूरी है।’
कर्नाटक में 5,500 आईटी एवं आईटीईएस कंपनियां मौजूद हैं। करीब 750 बहुराष्ट्रीय कंपनियां मिलकर राज्य से लगभग 58 अरब डॉलर का निर्यात करती हैं। कर्नाटक की 2022-23 आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ये कंपनियां राज्य में 12 लाख से अधिक पेशेवरों को प्रत्यक्ष रोजगार दे रही हैं और परोक्ष रोजगार के 31 लाख से अधिक मौके भी तैयार कर रही हैं।
टीमलीज की सह-संस्थापक ऋतुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा, ‘इस तरह की बेजा संरक्षणवादी और लोकलुभावन हरकतें हमें तमाम राज्यों में दिखती रहती हैं। योग्यता को बढ़ावा दिए बिना कोई भी राज्य अपने लोगों की प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी बढ़ा नहीं सकता। मगर यह बात भुला दी जाती है।’
राज्य सरकार ने इस सप्ताह विधान परिषद में कन्नड़ भाषा व्यापक विकास (संशोधन) विधेयक पेश किया। उसके बाद कर्नाटक के कन्नड़ एवं संस्कृति मंत्री शिवराज एस तंगडागी ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने कन्नड़ कर्मचारियों की संख्या नोटिस बोर्ड पर लगानी चाहिए।
लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही पिछले कुछ महीनों से कर्नाटक में भाषा का विवाद जोर पकड़ रहा है। वृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने एक अधिसूचना जारी कर कारोबारियों को निर्देश दिया है कि उनके 60 फीसदी साइनबोर्ड कन्नड़ में होने चाहिए। उसके बाद कन्नड़ समर्थक दुकानों पर लगे उन बोर्ड को काला करने में जुट गए हैं, जिन पर नाम अंग्रेजी में लिखे हैं।